29HBUS9 वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर दबाव में नजर आने लगी, बजी खतरे की घंटी
– एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच का फर्क 40 बेसिस पॉइंट्स तक पहुंचा
– इस अंतर के बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आने का मिलता है संकेत
नई दिल्ली, 29 सितंबर (हि.स.)। वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर दबाव में आती नजर आने लगी है। लंदन इंटर बैंक ओवरनाइट रेट (एलआईबीओआर) और यूएस ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप्स (ओआईएस) के बीच का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है। फिलहाल एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच का अंतर बढ़कर 40 बेसिस पॉइंट्स पर पहुंच गया है। एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच का अंतर वैश्विक आर्थिक स्थितियों का संकेत देता है। इस अंतर के बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आने का भी संकेत मिलता है।
एलआईबीओआर उस बेंचमार्क को कहते हैं, जिसका उपयोग दुनिया भर के वित्तीय संस्थान (बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) कर्ज के लिए ब्याज दर तय करने में करते हैं। दुनियाभर में प्रचलित क्रेडिट कार्ड और बड़ी कंपनियों को दिए जाने वाले कर्ज का ब्याज दर लंदन इंटर बैंक ओवरनाइट रेट यानी (एलआईबीओआर) के जरिए ही तय किया जाता है। इसी तरह ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप्स (ओआईएस) का उपयोग वित्तीय संस्थान ब्याज दरों से जुड़े जोखिम की हेजिंग करने में करते हैं। ओआईएस अमेरिकी अर्थव्यवस्था की पॉलिसी रेट से जुड़ा होता है। अमेरिका में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों को ही पॉलिसी रेट कहा जाता है।
फिलहाल एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच का अंतर बढ़कर 40 बेसिस पॉइंट्स तक पहुंच गया है। माना जा रहा है कि डॉलर इंडेक्स के 20 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने और इसके कारण दुनिया भर की मुद्राओं की तुलना में डॉलर में जोरदार तेजी की वजह से ये फर्क इस स्तर तक पहुंचा है। इसके अलावा बैंक ऑफ इंग्लैंड (बीओई) द्वारा बॉन्ड मार्केट में किए गए हस्तक्षेप के कारण भी एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच के फर्क को तेजी मिली है। दरअसल, इंग्लैंड के बॉन्ड मार्केट में सरकारी बॉन्ड यील्ड के 2008 के आर्थिक संकट के स्तर पर पहुंच जाने के बाद बीओई को बॉन्ड मार्केट में हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। लेकिन इसकी वजह से एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच बेसिस पॉइंट्स का फर्क और अधिक बढ़ गया है।
जानकारों के मुताबिक इन दोनों के बीच बेसिस पॉइंट्स का ये फर्क इस बात का संकेत देता है कि वैश्विक स्तर पर इंटर बैंक मार्केट में बैंकों को कर्ज मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बैंक एक दूसरे से अधिक ब्याज दर की मांग कर रहे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि भविष्य में किसी भी तरह के डिफॉल्ट के जोखिम से बचा जा सके। इसकी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में नकदी संकट (लिक्विडिटी क्रंच) के हालात बनने का खतरा भी बन गया है।
राहत की बात यही है कि एलआईबीओआर और ओआईएस के बीच अभी सिर्फ 40 बेसिस पॉइंट्स का ही फर्क है, जबकि कोरोना संकटकाल की शुरुआत में यानी मार्च 2020 में ये फर्क बढ़कर 80 बेसिस प्वाइंट का हो गया था। इसी तरह 2008 की वैश्विक मंदी के समय ये फर्क 170 बेसिस पॉइंट्स के स्तर पर पहुंच गया था। इस लिहाज से वैश्विक अर्थव्यवस्था में तत्काल 2008 या 2020 जैसी मंदी आने का खतरा नहीं है। 40 बेसिस पॉइंट्स का अंतर भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए मंदी की घंटी के समान ही है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात में जल्द सुधार नहीं हुआ, तो ये फर्क लगातार बढ़ता जाएगा। इसका परिणाम वैश्विक अर्थव्यवस्था की मंदी के रूप में सामने आ सकता है।