Mohan Bhagwat:सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बंधी है भारत की राष्ट्रीयता : भागवत

नई दिल्ली, 23 सितंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि भारत की राष्ट्रीयता सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बंधी हुई है।

डॉ. भागवत ने भारत की राष्ट्रीयता की अवधारणा और उससे जुड़े तथ्यों पर पूर्व नौकरशाहों को संबोधित किया। दिल्ली के अंबेडकर भवन में संकल्प फाउंडेशन एवं पूर्व सिविल सेवा अधिकारी मंच की ओर से आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि भारत की भूमि पुण्यभूमि है। भौगोलिक दृष्टि से अलग-थलग और समृद्धि के चलते यहां हमारे पूर्वजों ने जीवन के बारे में एक दर्शन विकसित किया। संस्कारों के माध्यम से यह दर्शन देश के लोगों में रचा बसा हुआ है। यह दर्शन अपने साथ-साथ सबके मंगल की कामना करता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के पूर्व प्रमुख सचिव नृपेन्द्र मिश्रा ने की।

संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि धर्म की भारतीय व्याख्या सत्य, करुणा, सुचिता और तपस (परिश्रम) इन चार मूल्यों पर आधारित है। बाकी पूजा पद्धति और देवी-देवता अलग हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से पश्चिमी देशों में राष्ट्रवाद को लेकर एक संशय का भाव रहा है। भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा राष्ट्रीयता से जुड़ी है। यह किसी के खिलाफ नहीं है। अगर भारत में हिटलर जैसा कोई व्यक्ति होता तो जनता उसे पहले ही अस्वीकार कर हटा चुकी होती। ऐसी सोच हमारे संस्कारों में नहीं है।

डॉ. भागवत ने कहा कि भारत और विश्व के अन्य देशों में राष्ट्रीयता का विकास अलग ढंग से हुआ है। विश्व के अन्य देशों की राष्ट्रीयता मानव निर्मित है। भारत में यह संस्कारों पर आधारित है। यह संस्कार हमें भारत भूमि से मिले हैं जिसे हम माता के रूप में देखते हैं। हम इस पर अपना अधिकार नहीं जमाते बल्कि इससे अपने आप को जोड़ते हैं। हम आत्मीयता से जुड़े हैं और एकता को स्वीकार करते हैं।

संघ प्रमुख ने व्याख्यानमाल के अंत में प्रश्नों के उत्तर में कहा कि भारत में हिंदू मुस्लिम एकता समय-समय पर प्रभावित होती रही है। अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ में यह बताया कि अलग रहने पर लाभ मिलेगा। जिससे भारत का विभाजन हुआ। उन्होंने संवाद के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इसके पीछे ताकत भी होनी चाहिए। गांधीजी के तत्कालीन प्रयास भी एकता की ओर थे, लेकिन उनके पीछे एक विभाजित समाज था जिसके चलते वे सफल नहीं हो पाये। आज वे होते तो उनके प्रयासों को एक संगठित समाज के बल से सफलता मिलती।

डॉ. भागवत ने कहा कि देश में आपसी मेलजोल बढ़ाना एकता के लिए बेहद जरूरी है। जनसांख्यिकी से जुड़े सवाल पर डॉ. भागवत ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए नीति बनाई जानी चाहिए और उसके लिए समाज का मन भी बनाया जाना चाहिए। यह सब पर अनिवार्य रूप से लागू होनी चाहिए। जहां स्थिति गड़बड़ है वहां इसे पहले लागू करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *