Draupadi Murmu:जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के मुद्दे आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण : राष्ट्रपति मुर्मू

नई दिल्ली, 15 सितंबर (हि.स.)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के मुद्दे आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि समय की मांग है कि सभी देश एक साथ आएं और उनके समाधान की दिशा में काम करें।

राष्ट्रपति भवन में उनसे मुलाकात करने वाले राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (एनडीसी) के 62वें पाठ्यक्रम के संकाय और पाठ्यक्रम सदस्यों को संबोधित करते हुए मुर्मू ने कहा कि हमें न केवल पारंपरिक खतरों, बल्कि प्रकृति की अनिश्चितताओं सहित अनदेखे खतरों का भी सामना करने के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हम एक गतिशील दुनिया में हैं जहां एक छोटे से बदलाव का भी व्यापक प्रभाव हो सकता है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी, इसके सुरक्षा संबंधी निहितार्थ भी हो सकते हैं। कोविड महामारी की गति और वेग महज उस खतरे का एक उदाहरण है, जिसका सामना आज मानवता को करना पड़ रहा है। यह हमें मानवजाति के असहाय होने का एहसास कराता है। राष्ट्रपति ने कहा कि हर खतरा हमें उससे मुकाबला करने और उसकी पुनरावृत्ति को रोकने की आवश्यकता के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।

राष्ट्रपति ने कहा, “हमें न केवल पारंपरिक खतरों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है, बल्कि प्रकृति की अनिश्चितताएं भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन और सतत विकास ऐसे मुद्दे हैं जो आज प्रमुख महत्व के हैं। यह समय की मांग है कि बोर्ड के सभी देश एक साथ आएं और उनके समाधान के लिए काम करें।”

राष्ट्रपति ने कहा कि यही वह बिंदु है, जिस पर रणनीतिक नीतियों को देशों की विदेश नीतियों के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह एक बहु-विषयक और बहु-आयामी दृष्टिकोण है, जिसके लिए हमें स्वयं को तैयार करने की जरूरत है।

सभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सुरक्षा एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल हम अक्सर अपनी बातचीत में करते हैं लेकिन इसके व्यापक प्रभाव हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दशकों में इसकी व्याख्या में काफी विस्तार हुआ है। यह पहले केवल क्षेत्रीय अखंडता तक सीमित थी, लेकिन अब इसे राजनीतिक और आर्थिक संदर्भों में भी देखा जाने लगा है। इस प्रकार, “सामरिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय रक्षा के औद्योगिक पहलुओं” का अध्ययन करने संबंधी एनडीसी पाठ्यक्रम का उद्देश्य आज और भी अधिक प्रासंगिक हो चुका है।

उन्हों ने यह जानकर खुशी हुई कि बीते वर्षों में एनडीसी पाठ्यक्रम अपने प्रतिभागियों में इन मुद्दों के प्रति गहन समझ उत्पन्न करने के अपने उद्देश्य पर खरा उतरा है।

इस बात पर गौर करते हुए कि 62वें एनडीसी पाठ्यक्रम में सशस्त्र बलों से 62, सिविल सेवाओं से 20, मित्र देशों से 35 और कॉरपोरेट क्षेत्र से एक प्रतिभागी शामिल हैं, राष्ट्रपति ने कहा कि यह इस पाठ्यक्रम की अनूठी विशेषता है, जिसने अत्यधिक सराहना बटोरी है। उन्होंने कहा कि यह पाठ्यक्रम के सदस्यों को विभिन्न दृष्टिकोणों को जानने का अवसर देता है, जिससे उनके विचारों और समझ के क्षितिज का विस्तार होता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक राष्ट्र के रूप में, आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम उठा रहा है। इस विजन को साकार करने के लिए विभिन्न नीतिगत कदम उठाए जा रहे हैं। यही वह विजन है, जो भारत को विकास और प्रगति के पथ पर ले जाता है। उन्होंने कहा कि हाल ही में जब स्वदेशी तकनीक से निर्मित पहले विमानवाहक पोत विक्रांत को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया, तो प्रत्येक भारतीय के लिए यह गर्व का क्षण था। इस तरह के कदम भारत के लोगों में नई उम्मीद और प्रेरणा का संचार करते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हम प्रगति के इस पथ पर निरंतर बढ़ते रहेंगे।

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