नई दिल्ली, 14 सितंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हिजाब मामले में बुधवार को सुनवाई हुई। दोनों पक्षों के बीच जोरदार जिरह के बाद जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर गुरुवार को भी सुनवाई जारी रखने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि यहां मसला ड्रेस कोड के जरिये स्कूल में अनुशासन का नहीं, मसला दूसरा है।
धवन ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद अखबारों में लिखा गया कि हिजाब पर बैन लगाया गया न कि ड्रेस कोड को बरकरार रखा गया। अखबार बताते हैं कि असल मुद्दा क्या है। इस पर कोर्ट ने कहा कि अखबार जो लिखते हैं, वो कोर्ट की सुनवाई का विषय नहीं है। बेहतर होगा, आप मसले पर केंद्रित रहकर अपनी बात रखें। धवन ने कहा कि जज कोई मौलवी या पंडित नहीं हैं, जो ये तय करें कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं। उन्हें सिर्फ देखना है कि हिजाब के प्रचलन के पीछे गलत मंशा तो नहीं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील हुजेफा अहमदी ने कहा कि जो मुस्लिम छात्राएं अभी मदरसों तक सीमित थीं, वो संकीर्णता छोड़कर स्कूली शिक्षा में शामिल हुईं हैं। अगर आप उनसे हिजाब पहनने का अधिकार छीन लेते हैं तो वो फिर मदरसे जाने के लिए मजबूर होंगी। 17 हजार छात्राएं इसी वजह से परीक्षा में शामिल नहीं हुईं। तब जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा कि यानी आप ये कहना चाहते हैं कि लड़कियां हिजाब नहीं पहनना चाहतीं, उन्हें इसके लिए मज़बूर किया जाता है। तब हुजेफा अहमदी ने कहा कि नहीं, मेरे कहने का मतलब है कि हिजाब की इजाज़त न होने पर अभिभावक उन्हें स्कूल के बजाय मदरसा भेजेंगे। ये वो लड़कियां हैं, जो तमाम बंधनों को तोड़कर स्कूल आईं हैं।
सुनवाई के दौरान 13 सितंबर को वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा था कि कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला कई मायनों में सही है, लेकिन उसे लागू करने में गलती है। ये मामला धर्म, संस्कृति और गरिमा से जुड़ा हुआ है। खुर्शीद ने कोर्ट को बुर्का, हिजाब और जिलबाब की तस्वीरें कोर्ट को दिखाकर उनका अंतर समझाया। उन्होंने कहा था कि संस्कृति महत्वपूर्ण है क्योंकि ये पहचान से जुड़ा है। खुर्शीद ने कहा था कि अगर हम कोर्ट में हैं तो हमें ड्रेस कोड मानना होगा, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इस ड्रेस कोड के अलावा वो वह कपड़े नहीं पहन सकता जो हमारी संस्कृति या धर्म का हिस्सा हों।
उन्होंने कहा था कि कुरान के मुताबिक हिजाब एक पर्दा है जो धर्म या संस्कृति का हिस्सा है। यूपी या उत्तर भारत में घूंघट जरूरी है। जब आप गुरुद्वारा जाते हैं तो लोग सिर को ढकते हैं। ये संस्कृति है। कुछ देशों की मस्जिदों में सिर नहीं ढका जाता है, लेकिन भारत में हर जगह सिर ढका जाता है, यही संस्कृति है। इस मामले में हिंदू सेना के नेता सुरजीत यादव ने भी कैविएट दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट के फैसले पर रोक का एकतरफा आदेश न देने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं कहते हुए शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। कर्नाटक की दो छात्राओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उलेमाओं की संस्था केरल जमीयतुल उलेमा ने भी याचिका दाखिल की है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या है। मुस्लिम लड़कियों के लिए परिवार के बाहर सिर और गले को ढक कर रखना अनिवार्य है।