वडोदरा के लक्ष्मीविलास पैलेस में गणपति स्थापना का 83वां वर्ष

इस बार एक किलो के सोने का हार और हीरे जड़ित मुकुट पहनाकर की गई है गणपति की स्थापना

वडोदरा/अहमदाबाद, 08 सितंबर (हि.स.)। गुजरात और महाराष्ट्र समेत देश के अन्य राज्यों में इन दिनों गणेशोत्सव की धूम है। गणेश चतुर्थी से शुरू होकर लगातार 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव गुजरात और महाराष्ट्र में व्यापक रूप से मनाया जाता है।

वैसे तो गणेशोत्सव 10 दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, लेकिन श्रद्धालु एक दिन और डेढ़ दिन से लेकर तीन, पांच, सात या 10 दिनों तक के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा घर पर स्थापित कर सकते हैं।

गणेश चतुर्थी के अवसर पर वडोदरा के लक्ष्मीविलास पैलेस में पूरे धूमधाम से भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई। भगवान गणेश को पारंपरिक रूप से पावन चौघड़िया में पालकी में शहनाई की धुन पर ले जाया गया और दरबार हॉल में स्थापित किया गया। लक्ष्मीविलास पैलेस के दरबार हॉल में गणेश को हीरे जड़ित मुकुट, एक किलो के सोने के हार और अन्य स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया है। वड़ोदरा के अलावा अहमदाबाद, भावनगर, सूरत और राज्य के अन्य शहरों में भी गणेशोत्सव काफी धूमधाम एवं भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। राज्य में सार्वजनिक गणेश मंडलों, विभिन्न हाउसिंग सोसायटियों और अन्य स्थानों पर गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई हैं।

वडोदरा के लक्ष्मीविलास पैलेस में शाही परिवार द्वारा पिछले कई वर्षों से मिट्टी के गणेश की स्थापना की जा रही है। वर्ष 1939 तक वडोदरा के राजघराने से जुड़े लोग अपने-अपने आवासो में चंद्रसुर वध की थीम के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करते थे। राज्य के विभिन्न राजमहलों में गणेश प्रतिमा की स्थायी रूप से भी स्थापना की जाती है। गणेशोत्सव के मौके पर उसके बगल में एक मिट्टी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसका विसर्जन किया जाता है। वर्ष 1939 में सर सयाजीराव गायकवाड़ ने गणेश की स्थायी प्रतिमा को बदलने का फैसला किया। सर सयाजीराव गायकवाड़ के निधन के बाद प्रताप सिंहराव गायकवाड़ गद्दी पर बैठ। उन्होंने भी गणेश प्रतिमा को बदलने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रतिमा के चयन के लिए प्रतियोगिता आयोजित किया था। वडोदरा के सभी कलाकारों को मूर्तियां बनाने के लिए कहा गया। कलाकारों द्वारा तैयार की गई मूर्तियों को एक कमरे में रखा गया। काशी के पंडितों को विशेष रूप से बुलाया गया था। काशी के पंडितों ने वडोदरा के कलाकार कृष्णराव चव्हाण द्वारा बनाई गई गणपति की मूर्ति को चुना। वर्ष 1940 के दशक से लेकर आज तक कृष्ण राव द्वारा डिजाइन की गई गणेश प्रतिमा महल में स्थापित है।

कृष्ण राव की मृत्यु के बाद उनके पुत्र मानसिंह चौहान ने गणेश की प्रतिमा बनाई। महल की मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार मानसिंह चव्हाण ने कहा, मुझे गर्व है कि हमारा परिवार पिछले 83 वर्षों से शाही परिवार के गणपति की मूर्ति बना रहा है। गणेश प्रतिमा बनाने के लिए मिट्टी भावनगर से मंगवाई जाती है।

वडोदरा और गणेशोत्सव का आपस में गहरा संबंध है। वडोदरा में ऐसे कई मंडल हैं जहां भगवान गणेश प्रतिमा की स्थापना के बाद दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। इसमें शाही परिवार के गणेश की प्रतिमा भी शामिल है। देश में सबसे पहले सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत पाटण जिले से हुई थी, जिसे एक महाराष्ट्रीयन पागेदार परिवार ने शुरू की थी। अहमदाबाद में भी मणिनगर दक्षिणी में शिव शक्ति युवक मंडल पिछले 70 वर्षों से सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मना रहा है।

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