दो हफ्ते के अंदर साझा न करने पर कैबिनेट सचिव को कोर्ट में तलब करने की चेतावनी
– सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले पर कानून बनाने के लिए केंद्र को दिया था निर्देश
नई दिल्ली, 02 सितंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स को सम्मान के साथ जीने का हक देने के मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इससे संबंधित विधेयक की प्रति पैनल के साथ दो हफ्ते के अंदर साझा करें वर्ना कैबिनेट सचिव को कोर्ट में तलब करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले पर कानून बनाने के लिए केंद्र को निर्देश दिया था।
आज सुनवाई के दौरान वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि अभी तक पश्चिम बंगाल ने सिर्फ हलफनामा दाखिल किया है। दरअसल मई में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए राज्य सरकारों को कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के काम को पेशा मानते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वो उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करें। कोर्ट ने कहा था कि सहमति से सेक्स के मामले में कोई कार्रवाई न करें।
कोर्ट ने कहा था कि सेक्स वर्कर को भी कानून के तहत गरिमा और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा था कि जब यह साबित हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क है और वो अपनी मर्जी से सेक्स कर रहा है तो पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। देश के हर नागरिक को अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है। ऐसे में पुलिस छापेमारी करके सेक्स वर्कर को परेशान नहीं करे। कोर्ट ने कहा था कि वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है लेकिन अपनी मर्जी से सेक्स करना गैरकानूनी नहीं है।
कोर्ट ने कहा था कि किसी भी बच्चे को उसकी मां से इसलिए अलग नहीं किया जा सकता है कि उसकी मां वेश्या है। वेश्यालयों में अगर कोई नाबालिग बच्चा सेक्स वर्कर के साथ रहते हुए पाया जाता है तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि वह तस्करी करने के लिए लाया गया है। कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी सेक्स वर्कर के साथ यौन हिंसा की गई है तो उसे तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जाए और उसे वो सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए जो यौन प्रताड़ना की पीड़िता को मिलती हैं। कोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश दिया था कि वो पत्रकारों से अपील करें कि जब पुलिस छापेमारी करे या कोई अभियान चलाए तो सेक्स वर्कर की पहचान उजागर न हो चाहे कोई पीड़ित हो या आरोपित।