Alipore:फॉलोअप. अलीपुर हादसा: मूल गांव तक शव ले जाने के नही है पैसे: परिजन

-पोस्टमार्टम के बाद शवों को लेने पहुंचे परिजन

नई दिल्ली, 16 जुलाई (हि.स.)। बाहरी उत्तरी जिले के अलीपुर इलाके के बकौली गांव में मलबे में दबकर जान गंवाने वाले मजदूरों के परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है। शनिवार दोपहर जहांगीरपुरी स्थित बाबू जगजीवन राम अस्पताल के शवगृह के बाहर बैठे गोदाम की दीवार के नीचे दबकर जान गंवाने वाले लोगों के परिजन के पास अपनों के शव को उत्तर-प्रदेश, झारखंड़ के मूल गांव तक ले जाने के पैसे भी नहीं थे।

वह कभी एसडीएम, कभी डीएम व कभी विधायक से इसको लेकर मदद मांगने की बातें कर रहे थे, लेकिन न तो उनको एसडीएम कार्यालय का पता था और न ही विधायक या किसी अन्य जनप्रतिनिधि का। शवों को गांवों तक पहुंचाने में कोई रिश्तेदार 500 रुपये की मदद कर रहा था तो कोई हजार रुपये की। वहीं बुढ़पुर में रह रही बहन अपने भाई का चेहरा आखिरी बार देखना चाह रही थी, लेकिन एंबुलेंस कर्मी और परिजन में हजार रुपये को लेकर कहासुनी हुई।

दीवार के नीचे दबकर जान गंवाने वाले उत्तर प्रदेश के बदायूं के सिकंदराबाद के राज मिस्त्री ऋषिपाल के पिता प्रकाश ने बताया कि उनके पास उनके बेटे ऋषिपाल के शव को गांव ले जाने के भी पैसे नहीं हैं। आखिर किस तरह वह शव को लेकर जाएंगे। उन्होंने बताया कि एंबुलेंस कर्मी नौ हजार से 10 हजार रुपये की मांग कर रहे हैं, शव को गांव तक पहुंचाने के लिए। लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं हैं। उन्होंने बताया कि उनके रिश्तेदार भी छोटा मोटा काम करते हैं।

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के गांव निवादिया के राज मिस्त्री प्रमोद का शव गांव ले जाने के लिए परिजन बाबू जगजीवन राम अस्पताल के शवगृह के बाहर पहुंचे थे। पोस्टमार्टम के बाद शव को एंबुलेंस में रखा गया था। परिजन के पास शव का अंतिम संस्कार निवादिया गांव ले जाकर करने के पैसे नहीं थे।

मजबूरी में उन्हें दिल्ली के निगम बोध घाट पर करना पड़ रहा था। ऐसे में परिजन का कहना था कि बुढ़पुर गांव में रह रही प्रमोद की बहन आखिरी बार उनका चेहरा देखना चाहती हैं। इसलिए एंबुलेंस पहले बुढ़पुर गांव लेकर चलो। इसके बाद निगम बोध घाट चले जाना, लेकिन एंबुलेंस घूमा कर ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक एक हजार रुपये अतिरिक्त मांग रहा था और उनकी पत्नी सीमा देवी के पास इतने पैसे थे नहीं। इसी को लेकर काफी देर तक शव एंबुलेंस में ही रखा रहा।सीमा देवी ने बताया कि उनके पास चार बच्चों को खाना खिलाने के पैसे भी नहीं हैं।वह हजारों रुपये कहां से लाए।

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