नई दिल्ली, 01 जुलाई (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने शुक्रवार को एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा कि तालिबान और तालिबानी कृत्य किसी प्रतिक्रिया या उकसावे का नतीजा नहीं है। इसके पीछे एक मानसिकता और कुछ मान्यताएं छिपी हैं जिसे आज देश को समझने की आवश्यकता है। यही मानसिकता सिमी और पीएफआई जैसे संगठनों के भी पीछे है।
दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में अरुण आनंद की लिखित दो पुस्तकों का आज विमोचन किया गया। दोनों पुस्तकें हैं ‘तालिबान- वार एंड रिलिजन इन अफ़गानिस्तान’ और ‘द फॉरगॉटेन हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ । पुस्तकों का प्रकाशन ‘प्रभात प्रकाशन’ की ओर से किया गया है।
सुनील अंबेकर ने कहा कि भारत के पड़ोस में तालिबानी शासन का सत्ता में आना केवल एक राजनीतिक घटनाक्रम नहीं है। देश ने 1947 में विभाजन के समय हिंसा को झेला है। हमें ध्यान देना चाहिए कि कहीं इस तरह की मानसिकता के ‘सुर और सूत्र’ हमारे यहां प्रवेश तो नहीं कर रहे। हमें देश के खिलाफ किए जाने वाले इन कृत्यों पर पर्दा नहीं डालना चाहिए।
उन्होंने कहा कि देश का इतिहास युवाओं को जानना जरूरी है। कई कारणों से इस इतिहास को विस्मित करने की कोशिश की गई है। खास तौर पर आरएसएस से जुड़े हुए इतिहास को दबाने की कोशिश की गई है। लेकिन यह किसी भी तरह से संभव नहीं है और सत्य धीरे-धीरे सामने आता ही है।
कार्यक्रम में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कंवल जीत सिंह ढिल्लों ने कहा कि खतरे को पनपने से पहले ही रोक देना बड़ी जीत होती है। तालिबानी मानसिकता को समय रहते ही रोक देना बेहद जरूरी है। आगे चलकर इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अपने सैन्य अनुभवों का हवाला देते हुए यह बातें कहीं।
पुस्तक के लेखक अरुण आनंद ने अपनी दोनों पुस्तकों को सभ्यताओं के संघर्ष और उनसे जुड़े विमर्श पर केंद्रित बताया। उन्होंने कहा कि देश को अपने शौर्य और पराक्रम को कभी भूलना नहीं चाहिए। उन्होंने पुस्तक में लिखे कुछ वाक्यों का जिक्र किया जिन्हें सामान्यता परिचित इतिहास में नहीं गिना जाता है। उन्होंने कहा कि तालिबान का दोबारा सर उठाना और अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करना पश्चिमी नीतियों का विफलता दर्शाता है।
उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम को वरिष्ठ अधिवक्ता अमन सिन्हा और कैप्टन आलोक बंसल ने भी संबोधित किया।