एक दशक से अधिक समय से ऑफसेट लंबित रखने वाली कंपनियों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाला गया
– यूरोप-अमेरिका की कंपनियों ने भारतीय रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में 30% का निवेश नहीं किया
नई दिल्ली, 30 मई (हि.स.)। भारत की डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी का पालन न करने वाली विदेशी कंपनियों पर रक्षा मंत्रालय ने नकेल कसनी शुरू कर दी है। देश के साथ प्रमुख सैन्य अनुबंध करने वाली उन विदेशी कंपनियों को नोटिस भेजे गए हैं, जिन्होंने ऑफसेट पॉलिसी के तहत भारतीय रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में कम से कम 30% का निवेश नहीं किया है। ऐसी कई कंपनियों के खिलाफ 43.14 मिलियन डॉलर का जुर्माना भी लगाया जा चुका है। एक दशक से अधिक समय से लंबित रखने वाली कंपनियों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया गया है।
भारत की डिफेंस ऑफसेट नीति के तहत विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय निर्माताओं को बड़े अनुबंधों के मूल्य का कम से कम 30% आउटसोर्सिंग अनिवार्य किया गया था। ऑफसेट पॉलिसी से 2008-2024 की अवधि में 11.2 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आने का अनुमान लगाया गया था लेकिन अब तक इनमें से 20% से अधिक को ही पूरा किया जा सका है। यूरोप और अमेरिका की कई प्रमुख विदेशी कंपनियों ने डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी का पालन नहीं किया है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक विशेष अनुरोध पर कई एक्सटेंशन दिए जाने के बावजूद पिछले पांच वर्षों में विदेशी कंपनियों ने 2.24 अरब डॉलर से अधिक का ऑफसेट नहीं दिया है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने संसद के पिछले मानसून सत्र के दौरान डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी पर संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में पिछले 15 साल में विदेशी कंपनियों से हुए रक्षा सौदों में भारत को 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान जताया था। संसद में पेश रिपोर्ट में रिपोर्ट में कैग ने कहा कि 2005 से 2018 के बीच हुए रक्षा समझौतों में किसी भी विदेशी कंपनी ने ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक अपनी तकनीक भारत को हस्तांतरित नहीं की है। कैग ने कहा है कि विदेशी कंपनियों को अगले छह साल में लगभग 55 हजार करोड़ रुपये के ऑफसेट दावे पूरे करने हैं। फिलहाल हर साल 1300 करोड़ रुपये की ऑफसेट प्रतिबद्धताएं ही अभी पूरी हो पा रही हैं। इसलिए कैग ने छह साल में 55 हजार करोड़ रुपये की ऑफसेट प्रतिबद्धताओं का पूरा हो पाना बड़ी चुनौती माना है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 2005 से 2018 के बीच भारत ने विदेशी रक्षा कंपनियों के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के 48 करार किए थे। रक्षा मंत्रालय की डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक दिसम्बर, 2018 तक भारत को 19,223 करोड़ के ऑफसेट ट्रांसफर होने थे लेकिन केवल 11,396 करोड़ का ही ट्रांसफर किया गया। इनमें से भी सिर्फ 5457 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धताएं ही स्वीकार की गईं हैं। यानी कि केवल 59 प्रतिशत ऑफसेट पॉलिसी का पालन किया गया है। इस तरह देखा जाए तो पिछले 15 साल में विदेशी कंपनियों से हुए रक्षा सौदों में भारत को 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है।
डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी का पालन न होने पर अब रक्षा मंत्रालय ने विदेशी कंपनियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी है। देश के साथ प्रमुख सैन्य अनुबंध करने वाली उन विदेशी कंपनियों को नोटिस भेजे गए हैं, जिन्होंने ऑफसेट पॉलिसी के तहत भारतीय रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में कम से कम 30% का निवेश नहीं किया है। ऐसी कई कंपनियों के खिलाफ 43.14 मिलियन डॉलर का जुर्माना भी लगाया जा चुका है। एक दशक से अधिक समय से लंबित रखने वाली कंपनियों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया गया है। सूत्रों ने कहा कि पहले चरण में चूक जारी रहने पर विदेशी उपकरणों के लिए निर्धारित भुगतान से जुर्माना काट लिया जाएगा। जिन कंपनियों को पूरा भुगतान कर दिया गया है, उनकी बैंकिंग गारंटी को भुना लिया जाएगा और अतिरिक्त दंडात्मक उपाय लागू किए जाएंगे।