नई दिल्ली, 12 मई (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट के जरिए राजद्रोह के मामले पर दिए गए फैसले का कई मुस्लिम संगठनों ने स्वागत किया है। जमात-ए-इस्लामी हिन्द ने राजद्रोह कानून मामले पर प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना के नेतृत्व वाली तीन जजों की पीठ के फैसले का स्वागत की है। वहीं पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने राजद्रोह कानून के तहत नए एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत किया है।
जमात-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रो. सलीम इंजीनियर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम शीर्ष अदालत के इस फैसले का स्वागत करते हैं। हम अदालत के उन जज़्बात कि भी कदर करते हैं कि जब तक केंद्र सरकार भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए, जो राजद्रोह के अपराध से सम्बंधित है, के प्रावधान पर पुनर्विचार और पुनः जांच के लिए किए गए वादों को पूरा नहीं करती है, इस धरा के तहत लगाए गए सभी आरोपों, लंबित मामलों, अपीलों और कार्रवाई पर रोक लगाते हैं, की भी सराहना करते हैं। यह एक ऐतिहासिक अंतरिम आदेश है जो प्रभावी रूप से कानून को स्थगित रखेगा। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा राजद्रोह कानून का अक्सर निर्दोष नागरिकों के खिलाफ दुरुपयोग किया जाता रहा है जिनके विचार सरकार की आलोचना करते हैं। यह औपनिवेशिक युग का अवशेष है और वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है। हमें उम्मीद है कि भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि इस कानून को कानून की किताबों से पूरी तरह हटा दिया जाए।
जमात के उपाध्यक्ष ने यूएपीए जैसे कानूनों के चुनिंदा उपयोग को भी शीर्ष अदालत के जरिए देखने की अपील की है। उनका कहना है कि इसका दुरुपयोग सरकारों से असहमति और आलोचना करने की स्वतंत्रता को दबाने के लिए भी किया जा रहा है। पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह बनाने के लिए कुछ कानून होना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कानून का दुरुपयोग करने का दोषी पाए जाने वाले को दंडित किया जा सकता है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ओएमए अब्दुस्सलाम ने राजद्रोह कानून के तहत नए एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत किया है। उनका कहना है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए या राजद्रोह कानून साम्राज्यवादी दौर का एक कानून है, जिसे आज़ाद भारत की विभिन्न सरकारें अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करती रही हैं। यह कानून नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का एक बड़ा हथियार बन गया था, जिसे निरस्त करने के लिए नागरिक अधिकार संगठन और जागरुक लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे। यह एक अच्छी बात है कि आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान लेते हुए अंतिम निर्णय आने तक इस पर रोक लगाने का फैसला सुनाया है। यह फैसला उन कई निर्दोष लोगों के लिए राहत का सामान होगा जो राजद्रोह कानून के तहत जेलों में कैद हैं, क्योंकि इससे उनकी रिहाई का रास्ता खुल सकता है।