नई दिल्ली, 09 मई (हि.स.)। दिल्ली के राऊज एवेन्यू कोर्ट ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की गोपनीय सूचनाएं साझा करने के मामले में गिरफ्तार चित्रा रामकृष्णा और सह-आरोपित आनंद सुब्रमण्यम की जमानत याचिका पर फैसला टाल दिया है। जमानत याचिका पर फैसला तैयार नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से फैसला टालना पड़ा। स्पेशल जज संजीव अग्रवाल ने 12 मई को फैसला सुनाने का आदेश दिया।
28 अप्रैल को कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीबीआई ने 21 अप्रैल को चित्रा रामकृष्णा और आनंद सुब्रमण्यम के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट में सीबीआई ने कहा है कि चित्रा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए महत्वपूर्ण फैसले किए। स्टॉक एक्सचेंज नियामक संस्था सेबी ने 11 फरवरी को चित्रा रामकृष्णा और दूसरे आरोपितों के साथ आनंद सुब्रमण्यम की नियुक्ति में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया। चित्रा ने सेबी से पूछताछ में कहा था कि एक रहस्यमयी योगी ई-मेल के जरिये उन्हें फैसले लेने में मदद करते थे। सेबी के आरोपों के बाद सीबीआई ने चित्रा को गिरफ्तार किया था। 8 अप्रैल को सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कहा कि जांच अहम मोड़ पर है और वो कई डिजिटल साक्ष्यों की पड़ताल कर रही है।
इसके पहले 24 मार्च को कोर्ट आनंद सुब्रमण्यम की जमानत याचिका खारिज कर चुका है। सुनवाई के दौरान सीबीआई ने आनंद सुब्रमण्यम की जमानत का विरोध करते हुए कहा था कि आरोपित को लग रहा था कि हिमालयन योगी बनकर छिपे रहेंगे लेकिन सीबीआई ने इनको पकड़ लिया। 9 मार्च को कोर्ट ने सीबीआई को धीमी जांच के लिए फटकार लगाई थी। इस पर सीबीआई ने कहा था कि हम गंभीरता से जांच कर रहे हैं और इसकी जांच के लिए 30 अधिकारियों की एक स्पेशल टीम गठित की गई है। इस टीम में एक वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं। सीबीआई ने कहा था कि उसने इस मामले में एनएसई के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर रवि नारायण से भी पूछताछ की है।
आनंद सुब्रमण्यम ने 9 मार्च को इस मामले में अपनी जमानत याचिका दायर की थी । आनंद सुब्रमण्यम को 25 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने इस मामले की आरोपित चित्रा रामकृष्णा को 6 मार्च को गिरफ्तार किया था। इसके पहले 5 मार्च को राऊज एवेन्यू कोर्ट ने चित्रा रामकृष्णा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दिया था। कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों को अलग तरीके से देखना होगा क्योंकि इसमें सार्वजनिक धन के नुकसान के लिए गहरी साजिशें रची गई होती हैं। कोर्ट ने कहा था कि एनएसई प्रमुख की मिलीभगत के बिना ये सूचनाएं कैसे साझा हो सकती हैं। इसे एनएसई के इतिहास के काले दिन के रूप में याद किया जा सकता है।