Rakhigarhi : 7000 साल पहले भी होते थे स्मार्ट शहर, राखीगढ़ी में मिले साक्ष्य

राखीगढ़ी, 8 मई (हि.स.)। देश के पांच प्रमुख हड़प्पन साइट में अब राखीगढ़ी भी शुमार हो गया है। यहां 7000 साल पुराने हड़प्पन कालीन स्मार्ट शहर मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( एएसआइ) द्वारा की गई खुदाई में पता चला है कि आज से 7000 साल पहले भी लाेग योजनाबद्ध तरीके से मकान बनाते थे। बस्तियों में पानी निकासी की व्यवस्था बेहतर होती थी। सड़कों से मिलती हुई गलियां होती थीं। सड़कों के मोड़़ पर कच्ची मिट्टी को जलाकर ईंटों को मजबूत कर लगाया जाता था ताकि मोड़ पर निर्माण को नुकसान नहीं पहुंचे। राखीगढ़ी के उत्खनन में मुहर, मृदभांड व हाथी दांत,सोने, मानव की हडिडयों की वस्तुएं और मिट्टी के खिलाैने मिले हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( एएसआइ) के संयुक्त महानिदेशक डा संजय मंजुल ने बताया कि राखीगढ़ी में अपार संभावनाएं हैं। करीब 350 हेक्टेयर में फैले इस क्षेत्र में 7000 साल पहले के जीवन के बारे में कई राज उजागर हुए हैं। जमीन की खुदाई में कई साक्ष्य मिले हैं जिनसे उस समय के नगर योजना, रहन सहन, काम-काज के बारे में जानकारी मिली है। उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक साइट में अभी कई राज दफन है इसलिए सितंबर में दोबारा यहां खुदाई कराई जाएगी।

एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक अजय यादव ने बताया कि टीले संख्या में अबतक के उत्खनन में प्राप्त अवशेषों के आधार पर प्रारंभिक हड़प्पा काल से परिपक्व हड़प्पा काल तक के पुरावशेषों और साक्ष्य मिले हैं। यहां बसी बस्तियां वैदिक सरस्वती की सहायक नदियों में से एक दृष्ट्वती के पास स्थित थीं, जिसे आधुनिक चौतांग नदी के रूप में पहचाना जाता है। यहां मिले अवशेषों में कपड़े रंगाई करने, कुंभकारी कार्यों में कलाकृतियों, मिट्टी के बर्तनों के निर्माण, बेशकीमती पत्थर से बने मनकों के साक्ष्य मिलें हैं। इस शहर के बारे में और जानने के लिए यहां अभी और खुदाई की जानी है ताकि तस्वीर पूरी तरह से साफ हो सकें और एक अद्भुत और योजनाबद्ध तरीके से बसे शहर को सबसे सामने लाया जा सकें।

कहां है राखीगढ़ी

राखीगढ़ी का पुरातत्व स्थल हिसार शहर से 57 किमी और नई दिल्ली से 150 किमी उत्तर-पश्चिम में हरियाणा के जिला हिसार में नारनौद तहसील में है।साइट के पुरातात्विक साक्ष्य राखीखास और राखीशाहपुर और इसके आसपास के कृषि क्षेत्रों के वर्तमान गांवों को कवर करते हुए लगभग 350 हेक्टेयर में फैले हुए हैं। राखीगढ़ी में कुल 11 टीले हैं।

कब कब हुआ उत्खनन

इस स्थल की खोज सबसे पहले साल 1969 में प्रोफेसर सूरज भान ने की थी। उसके बाद साल 1997-2001 में पुरातत्व संस्थान, एएसआइ द्वारा यहां उत्खनन का काम हुआ । उसके बाद साल 2013 से 2016 तक डेक्कन कालेज, पुणे के शोधकर्ताओं ने यहां खुदाई की।

आईकॉनिक साइट की तरह होगा विकसित

साल 2020-21 के केंद्रीय बजट के अनुसार भारत सरकार ने पांच प्रतिष्ठित स्थलों को आइकोनिक साइट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी। उसमें से एक राखीगढ़ी है। इसका मकसद राखीगढ़ी के पुरातात्विक स्थल को आगंतुकों को सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ संरचनात्मक अवशेषों को उजागर करना है। इसके साथ भविष्य में यहां के अवशेष को संरक्षित करके लोगों के लिए सुलभ बनाना भी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और हरियाणा सरकार के बीच एक समझौता ज्ञापन की प्रक्रिया चल रही है, जिसके अनुसार राखीगढ़ी की प्राचीन वस्तुओं को हरियाणा सरकार द्वारा बनाए गए संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा।

इस बार तीन टीलों पर हुआ उत्खनन

इस बार उत्खनन के लिए तीन टीले लिए गए हैं। इसमें टीला-एक,टीला-तीन और टीला-सात को जांच के लिए लिया गया है। तीन टीलों में कुल 13 खाइयां बनाई गई हैं।टीला- एक में पांच खाई, टीला-में सात खाई और टीला- सात में एक खाई है।

किस टीले में क्या मिला

टीला-एक

टीला-एक में अन्य गतिविधियों के अलावा जैसे अर्ध-कीमती पत्थरों की बड़ी मात्रा में अपशिष्ट मिले हैं। जो व्यापक तौर पर मोतियों जैसी वस्तुओं के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता था।पाए गए अवशेषों के अनुसार सड़क के साक्ष्य 2.6 मीटर की सामान्य चौड़ाई के साथ पाए गए हैं। इस सड़क के दोनों ओर मिट्टी की दो दो ईंटें लगी हैं। जिससे सिद्ध होता है कि इसे व्यवस्थित तरीके से बनाया गया है। इसकी गलियां पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण दिशा में 18 मीटर तक जाती हैं। वर्तमान में मिट्टी के ईंटों के 15 भाग दिखाई दे रहे हैं।

टीला-तीन

टीला- एक से दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित टीला- तीन की खुदाई की जा रही है, जहां जली हुई ईंट की दीवार मिली है, जो पूर्व-पश्चिम दिशा में है। वर्तमान में आगंतुकों के लिए 11 मीटर लंबाई, 58 सेमी चौड़ाई और 18 ईंट की ऊंचाई वाली खुली दीवार मिली है। यह जली-ईंट मिट्टी-ईंटों के संयोजन में पाई गई है। दीवार के दक्षिणी भाग में इस दीवार से सटे ईंटों से बनी एक नाली मिली है।

टीला एक और टीला- तीन में मुहर, हाथी और हड़प्पा लिपि से संबंधित टेराकोटा की बगैर पकी हुईं वस्तुएं शामिल हैं। टेराकोटा और स्टीटाइट से बने कुत्ते, बैल आदि पशुओं की मूर्तियां, बड़ी संख्या में स्टीटाइट की माला, अर्ध-कीमती पत्थरों के मोती, तांबे की वस्तुएं आदि भी खोदाई में मिली हैं।

टीला- सात

टीला-सात जो कि टीला- एक के 500 मीटर उत्तर में स्थित है।पिछली खुदाई में यहां लगभग 60 कब्रें मिलीं थीं। इस बार इस क्षेत्र की खोदाई में दो कब्रें मिली हैं। ये कब्रें दो महिलाओं की होने की पहचान हुई है। महिलाओं को मिट्टी के बर्तन और सजे हुए गहनों और शेल चूड़ियों के साथ दफनाया गया है। गहनों में बीड्स का उपयोग हुआ है। एक कंकाल के साथ तांबे का छोटा दर्पण मिला है।से कंकाल 5000 साल पुराने माने जा रहे हैं। मगर एएसआइ ने इनका डीएनए कराने के लिए नमूना भिजवाया है जिससे इनके पुराने होने की सही जानकारी मिल सकेगी।

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