भोपाल, 03 मई (हि.स.)। एक समय बीमारू कहा जाने वाला मध्य प्रदेश आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में देश के सबसे तेज प्रगति करने वाले राज्यों में शामिल है। मुख्यमंत्री चौहान की संवेदनशीलता से सभी परिचित हैं। वे सबके कल्याण का कार्य करते हैं। वह भारत का भविष्य हैं । यह बातें महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज ने यहां मंगलवार को भगवान परशुराम की प्रतिमा के लोकार्पण समारोह के दौरान कही।
इस अवसर पर उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि शिवराज ऐसे जनप्रतिनिधि हैं, जिनकी छवि प्रदेश के बाहर भी बन्धु-बान्धवों वाली है। जहां भी वे जाते हैं, लोग उन्हें मामा कहकर पुकारते हैं। माता, बहनों, दीन, दरिद्र, दुखियों के लिए उनकी संवेदना एवं इन सभी के लिए काम करने का उनका संकल्प अद्भुत है।
उन्होंने कहा कि सबके साथ चलने में ही सबकी भलाई और उन्नति है। सभी जातियां समान और महान हैं। हिन्दू समाज का गौरव वास्तव में जातियों से है। आतताइयों से यदि हिन्दू धर्म आज तक संघर्ष करता रहा और अपने को बचाए रखने में सफल हुआ है तो उसका कारण ये हमारी सभी भारत की जातियां हैं, वे लगातार मलेच्छों और अंग्रेजों तथा समस्त विदेशी आक्रान्ताओं से संघर्ष करती रही हैं। उन्होंने कहा कि जो हमें स्वयं के लिए अच्छा नहीं लगता, वह अन्य के साथ नहीं करना ही धर्म है। मनुष्य के लिए सदा सकारात्मक रहने की अपेक्षा यथार्थ में रहना आवश्यक है।
आचार्य महामण्लेश्वर स्वामी ने कहा कि ब्रह्म की व्यापकता का बोध रखने वाला ही ब्राह्मण है। ब्राह्मण दीपक के समान है, जो आलोकित होने पर सबको सामान रूप से प्रकाश देता है। सबके मंगल की कामना ही हमें सर्वमान्य और सर्व सम्मानित बनाती है। कोई व्यक्ति जाति से ब्राह्मण नहीं होता, ब्राह्मण ज्ञान से होता है। उन्होंने वेद के मंत्र ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥ (यजुर्वेद 31.11) के माध्यम से बताया कि कैसे समाज जीवन के लिए और अपने स्वयं के शरीर में इन चारों का विशेष महत्व है। किसी एक के नहीं होने से जैसे मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती, वैसे ही यह समाज के कार्य व्यवहार के लिए वर्ण व्यवस्था है।
उन्होंने कहा कि समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए इन चारों वर्णों की सदा आवश्यकता रहती है। आज के युग में भी शिक्षक, रक्षक, पोषक और सेवक ये चार श्रेणियां ही हैं । नाम कुछ भी रखे जा सकते हैं, परन्तु चार वर्णों के बिना संसार का कार्य चल नहीं चलता है। इन वर्णों में सभी का अपना महत्व और गौरव है। न कोई छोटा है, न कोई बड़ा, न कोई ऊंच है और न कोई नीच तथा न ही कोई अछूत है।