नई दिल्ली, 01 मई (हि.स.)। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्ध इतिहास का हवाला देते हुए आजादी के अमृतकाल में भारतीय विश्वविद्यालयों को दुनिया के शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों में स्थान हासिल करने की चुनौती को स्वीकार कर भारत को फिर से विश्व गुरू बनाने का आह्वान किया है।
रविवार को यहां दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नायडू ने उच्च शिक्षा को ग्रामीण क्षेत्रों में ले जाने और इसे अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाने की जरुरत बताई। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विश्वविद्यालयों को समाज की गंभीर समस्याओं का समाधान करने के लिए नवीन और नए विचारों के साथ आना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध का अंतिम उद्देश्य लोगों के जीवन को अधिक आरामदायक और खुशहाल बनाना होना चाहिए।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने स्मारक शताब्दी डाक टिकट, स्मारक शताब्दी सिक्का, स्मारक शताब्दी खंड और दिल्ली विश्वविद्यालय स्नातक पाठ्यक्रम रूपरेखा- 2022 (हिंदी, संस्कृत और तेलुगु संस्करण) का भी विमोचन किया। उन्होंने विश्वविद्यालय की शताब्दी वेबसाइट का भी शुभारंभ किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी लोगो की निर्माता गार्गी कॉलेज की छात्रा कृतिका खिंची को भी सम्मानित किया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) -2020 को देश के शैक्षिक परिदृश्य में क्रांति लाने वाला एक दूरदर्शी दस्तावेज बताते हुए उन्होंने कहा कि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लागू होने पर मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर गेम-चेंजर साबित होगा। बच्चों की मातृभाषा में बुनियादी शिक्षा प्रदान करने का आह्वान करते हुए नायडू ने कहा कि स्थानीय भाषा को प्रशासन और अदालतों में संचार का मुख्य माध्यम होना चाहिए। उन्होंने कहा, “हर राजपत्र अधिसूचना और सरकारी आदेश स्थानीय या मूल भाषा में होना चाहिए ताकि आम आदमी इसे समझ सके।”
नायडू ने सभा को याद दिलाया कि प्राचीन भारत ने विश्वगुरु होने की प्रतिष्ठा प्राप्त की थी और संस्कृति का एक प्रसिद्ध पालना था। उन्होंने कहा कि नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी और ओदंतपुरी विश्वविद्यालय जैसे ज्ञान के प्रतिष्ठित केंद्र, जो मानवता के लिए सबसे पहले ज्ञात थे, इस तथ्य के पर्याप्त प्रमाण हैं। यह घोषणा करते हुए कि भारतीय विश्वविद्यालयों को दुनिया के शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों में स्थान देना उनकी गहरी इच्छा है उपराष्ट्रपति ने सभी हितधारकों से इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए काम करने को कहा।
शिक्षा को केवल रोजगार साधन नहीं मानते हुए उन्होंने कहा कि यह ज्ञान और उसकी वृद्धि के लिए जरूरी है। शिक्षा सीखने की एक आजीवन प्रक्रिया है और केवल डिग्री हासिल करने से ही समाप्त नहीं हो जाती। उन्होंने छात्रों को बड़े सपने देखने, ऊंचे लक्ष्य रखने और जीवन में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करने का आह्वान किया।
शिक्षा प्रणाली के भारतीयकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे चाहते हैं कि शैक्षणिक संस्थान भारतीय संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों जैसे बड़ों के प्रति सम्मान, शिक्षकों के प्रति सम्मान और प्रकृति के प्रति प्रेम को बढ़ावा दें।