लखनऊ, 29 अप्रैल (हि.स़.)। नृत्य मेरे लिए एक साधना है। यह हमें ईश्वर से जोड़ता है। मेरे लिए नृत्य ईश्वर से तारतम्यता बनाए रखने का एक माध्यम है। यह बात ख्याति प्राप्त कथक नृत्यागंना सुरभि सिंह ने शुक्रवार का विश्व नृत्य दिवस पर एक खास बातचीत में कहीं।
स्वीट्जरलैंण्ड, पेरिस सहित अन्य विदेशों व अपने ही देश के विभिन्न मंचों पर अपनी नृत्य कला प्रदर्शन कर चुकी सुरभि बताती हैं कि लोग भले ही नृत्य के ज्ञाता न बन सकें या नाम न कमा सकें, लेकिन वे भी नृत्य के जरिए ईश्वर की उपासना तो कर ही सकते हैं।
लोकप्रिय नृत्यागंना सुरभि कथक को योग से भी जोड़कर देखती हैं। वह कहती हैं कि नृत्य में ध्यान, समाधि है। जब तक आप पूरी तरह से एकाग्र नहीं होते तब तक आप एक कुशल नृत्यागंना नहीं बन सकती है।
एक प्रश्न के उत्तर में वह बताती हैं कि विदेशों में भारतीय शास़्त्रीय संगीत और नृत्यों के प्रति बहुत उत्साह है। ईटली, श्रीलंका व अन्य देशों विद्यार्थी यहां आकर कथक सिखाते हैं। जो अपने देश में जाकर एक अच्छे गुरू बन जाते हैं।
सुरभि ने कथक को पारम्परिक नृत्य से निकालकर एक अपने अंदाज में पिरोया है। इसमें राम की शक्तिपूजा, हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला, आज की द्रौपदी व नारी सशक्तिकरण पर अपने खुद की नृत्य नाटिका को मंच पर उतारा है। जिसकी दर्शकों ने सराहना भी की है।
अंत में सुरभि बताती हैं वह अपनी साधना में रत हैं और इसे नित नई ऊचांइयों पर पहुंचना ही हमारा ध्येय है।