High Court : सरकार की आलोचना भी एक सीमा तक होनी चाहिए: हाई कोर्ट

नई दिल्ली, 27 अप्रैल (हि.स.)। दिल्ली हिंसा की साजिश रचने के मामले में आरोपित उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल सही है। हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना की भी एक सीमा होनी चाहिए। दूसरी ओर उमर खालिद की ओर से कहा गया कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है।

सुनवाई के दौरान रजनीश भटनागर ने उमर खालिद के वकील त्रिदीप पायस से पूछा कि क्या देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल उचित है। तब पायस ने कहा कि सरकार या सरकार की नीतियों की आलोचना करना गैरकानूनी नहीं है। सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है। जस्टिस भटनागर ने उमर खालिद के भाषण में चंगा शब्द के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाया। तब पेस ने कहा कि यह व्यंग्य है। सब चंगा सी का इस्तेमाल शायद प्रधानमंत्री के दिए गए भाषण के लिए किया गया था।

उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं हो सकता है। यूएपीए के आरोपों के साथ 583 दिनों की जेल की कल्पना सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के लिए नहीं की गई थी। हम इतने असहिष्णु नहीं हो सकते हैं। तब जस्टिस भटनागर ने कहा कि आलोचना की भी एक सीमा होनी, एक लक्ष्मण रेखा भी होनी चाहिए।

पेस ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अपने आप में हिंसा का आह्वान नहीं करता है। दिल्ली हिंसा के किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा है कि उन्हें हिंसा के लिए उकसाया गया था। केवल दो गवाहों ने इस भाषण क सुनने का हवाला दिया। वे कहते हैं कि वे भाषण से उत्तेजित नहीं थे। उन्होंने कहा कि दंगों से कुछ हफ्ते पहले अमरावती में भाषण दिया गया था और खालिद दंगों के दौरान दिल्ली में मौजूद नहीं थे।

हाई कोर्ट ने 22 अप्रैल को उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि प्रथम दृष्टया उमर खालिद के भाषण सही नहीं प्रतीत होते हैं। उमर खालिद ने अमरावती में जो भाषण दिया उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है। सुनवाई के दौरान त्रिदीप पायस से कोर्ट ने पूछा था कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप क्या हैं तो उन्होंने कहा था कि साजिश रचने का। पायस ने कहा कि उमर खालिद हिंसा के समय दिल्ली में मौजूद भी नहीं था। उमर खालिद के पास से कुछ बरामद भी नहीं किया गया है। पायस ने कहा था कि जिस भाषण को आधार बनाया गया है वो चुनावी लोकतंत्र और कानून के शासन पर था।

उल्लेखनीय है कि 24 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कड़कड़डूमा कोर्ट में सुनवाई के दौरान पायस ने कहा था कि चार्जशीट में कहा गया है उमर खालिद ने 10 दिसंबर 2019 को प्रदर्शन में हिस्सा लिया, लेकिन क्या प्रदर्शन में शामिल होना अपराध है। उन्होंने कहा था कि उमर खालिद के खिलाफ हिंसा करने के कोई सबूत नहीं हैं। जांच जारी रहना हर प्रश्न का उत्तर नहीं है। उन्होंने कहा था कि चुप्पी की साजिश का आरोप गलत है। अभियोजन के लिए ये काफी आसान है कि जब दो, तीन और दस लोग व्हाट्स ऐप पर एक ही भाषा बोलें तो आप कुछ के खिलाफ आरोप लगाएंगे और कुछ के खिलाफ नहीं क्योंकि वो आपकी दलील के मुताबिक है।

दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा के आरोपित उमर खालिद समेत दूसरे आरोपितों की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में टेरर फंडिंग हुई थी। स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर अमित प्रसाद ने कहा कि इस मामले के आरोपित ताहिर हुसैन ने काला धन को सफेद करने का काम दिया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हुई। इस मामले में 755 एफआईआर दर्ज की गई हैं। उमर खालिद को 13 सितंबर 2020 को पूछताछ के बाद स्पेशल सेल ने गिरफ्तार कर लिया था। 17 सितंबर 2020 को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की ओर से दायर चार्जशीट पर संज्ञान लिया था। 16 सितंबर 2020 को स्पेशल सेल ने चार्जशीट दाखिल किया था।

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