नई दिल्ली, 26 अप्रैल (हि.स.)। ताड़ के पत्तों पर अंकित अति प्राचीन बौद्ध साहित्य को सुरक्षित करने, उसके अध्ययन- शोध और उसे आम लोगों के बीच पहुंचाने को लेकर भारत और थाईलैंड ने मिलकर एक साझा प्रयास शुरू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए थाईलैंड में अयूथया प्रांत के वांग नोई स्थित एमसीयू के रेक्टर बिल्डिंग में भारत के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और थाईलैंड की एमसीयू (चियांग माई परिसर) के बीच एक सहमति बनी है। इसको लेकर एमसीयू के रेक्टर प्रो.(डॉ.) फरा धमवज्रबंडित की मौजूदगी में सहमति पत्र पर इंदिरा गांधी कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और एमसीयू के वाइस रेक्टर फरा विमोलमुनि ने हस्ताक्षर किए।
इंदिरा गांधी कला केंद्र के मीडिया नियंत्रक अनुराग पुनेठा ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कह कि समझौते के मुताबिक, उक्त साहित्य का डिजटलीकरण भी किया जाएगा। राष्ट्रीय कला केंद्र इसके लिए एमसीयू के चियांग माई परिसर में एक संरक्षण प्रयोगशाला का भी निर्माण करेगा।
उल्लेखनीय है कि दक्षिण पूर्व एशिया में ‘भारत प्रभावी देशों’ के रूप में थाईलैंड के साथ लाओस, कंबोडिया, म्यामार जैसे देशों के नाम लिए जाते हैं। इन देशों से भारत के लगभग दो हजार वर्ष पुराने सम्बंध हैं। यह भी प्रमाण मिलते हैं कि सम्राट अशोक ने अनेक बौद्ध भिक्षुओं को थाइलैंड भेजा था। संस्कृत और पाली से थाई भाषाओं में अनुवाद किया हुआ ढेर सारा साहित्य वहां मूल रूप में मौजूद है। वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद जिन देशों से उसके शुरुआती संबंध बने, उनमें थाईलैंड भी शामिल रहा। पिछले कुछ वर्षों में तो दोनों देशों के बीच न केवल सांस्कृतिक-सामाजिक बल्कि समुद्री बंदरगाहों के जरिए व्यापारिक और रणनीतिक रिश्ते भी बने हैं।