Facebook : दो युवकों की फेसबुक पर दोस्ती, फिर प्यार और शादी

ऊना (हिमाचल प्रदेश) , 26 अप्रैल (हि.स.)। समलैंगिक विवाह से देवभूमि हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला सुर्खियों में आ गया है। हिमाचली और उत्तराखंडी दो युवकों की शादी का यह अफसाना घर-परिवार और समाज की दहलीज को लांघता हुआ पुलिस चौखट पर पहुंच गया। पुलिस का कहना है कि दिलचस्पी का केंद्र बने इन युवकों के मुताबिक उनकी शादी को छह माह का अरसा गुजर चुका है।

हिमाचल प्रदेश में दो पुरुषों की शादी का संभवतः यह पहला प्रकरण है। डेढ़ साल पहले फेसबुक पर दोस्ती, फिर प्यार और इसके बाद अब शादी की यह हैरतअंगेज करने वाली कहानी जिले में मंगलवार को दिनभर चर्चा में रही। ऊना जिला निवासी इस युवक की उम्र 24 साल है। उत्तराखंड के युवक के चेहरे की बनावट लड़कियों जैसी है। दोनों ने दिल्ली के एक मंदिर में शादी की है।

उत्तराखंड का युवक चारदिन पहले अपने जीवनसाथी के साथ रहने के लिए ऊना आया था। इस समलैंगिक विवाह का खुलासा सोमवार रात ऊना वाले युवक के छोटे भाई को शक होने पर हुआ। कुछ देरबाद आसपास के लोग एकत्र हो गए और हंगामा होने लगा। समलैंगिक विवाह करने वाले दोनों युवक मदद की दरकार करते हुए पुलिस स्टेशन पहुंच गए। ऊना के युवक के घर में छोटे भाई के अलावा और कोई नहीं है। एसपी अर्जित सेन ठाकुर का कहना है कि उत्तराखंड के युवक के परिवार को ऊना बुलाया गया है। उनके आने के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी।

उल्लेखनीय है कि भारत में भी स्वेच्छा से स्थापित समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किया जा चुका है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 6 सितंबर, 2018 को ऐतिहासिक फैसला सुना चुकी है। समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने की न्यायिक व्यवस्था के बाद अब ऐसे जोड़ों के विवाहों के पंजीकरण का मसला न्यायिक समीक्षा के दायरे में पहुंच चुका है।

ऐसे जोड़े चाहते हैं कि उनके विवाह को मौलिक अधिकार के रूप में कानूनी मान्यता प्रदान की जाए। इसके लिए हिंदू विवाह कानून, विशेष विवाह कानून और विदेशी विवाह कानून में संशोधन के लिए उचित निर्देश दिए जाएं ताकि उनकी शादी का पंजीकरण हो सके।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 495 पेज के फैसले में कहा था कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को भी संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के तहत गरिमा के साथ जीने का हक है। मगर इस फैसले में समलैंगिक जोड़ों के विवाह होने पर उसे मान्यता देने या उसके पंजीकरण के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं थी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपनी व्यवस्था में अप्राकृतिक यौनाचार से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त करते हुए कहा था कि यह समता और गरिमा के साथ जीने की आजादी प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन करता है।

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