नई दिल्ली, 22 अप्रैल (हि.स.)। उपभोक्ता वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका वकील विभोर आनंद ने दायर की है।
याचिका में कहा गया है कि 15 फीसदी लोगों के लिए 85 फीसदी लोगों को उनकी धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए बाध्य किया जा रहा है। यह सर्टिफिकेट निजी संस्थाएं जारी करती हैं। इस पर पाबंदी लगे। याचिका में कहा गया है कि 1974 तक किसी ने हलाल सर्टिफिकेट के बारे में सुना भी नहीं था। 1993 के बाद से डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का हलाल सर्टिफिकेशन शुरू कर दिया गया। अब स्थिति ये है कि हर तरह की खाद्य सामग्री कॉस्मेटिक, साबुन, मेडिकल सामान तक का हलाल सर्टिफिकेशन शुरू कर दिया गया।
याचिका में कहा गया है कि सभी लोगों को उनके धर्म के खिलाफ हलाल प्रमाणित उत्पाद के इस्तेमाल के लिए बाध्य किया जा रहा है। यह मुक्त बाजार के सिद्धांतों के खिलाफ है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। हलाल के सर्टिफिकेशन की कोई कानूनी मान्यता नहीं है। ये सर्टिफिकेशन जमीयत उलेमा एक महाराष्ट्र, जमीयत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट जैसी कुछ निजी संस्थाएं जारी करती हैं। इन सर्टिफिकेशन के जरिये इन संस्थाओं को करोड़ों रुपये की कमाई होती है। इस आमदनी का किन कामों में इस्तेमाल होता है, इसकी भी जांच होनी चाहिए।