गुवाहाटी, 14 अप्रैल (हि.स.)। राज्य के विभिन्न हिस्सों में लगातार बारिश, महंगाई के बावजूद पूरे राज्य में असमिया संस्कृति की जीवन रेखा रंगाली बिहू का पूरे उत्साह के साथ स्वागत किया जा रहा है। विपरीत मौसम के बावजूद गुरुवार को पूरे राज्य में रंगाली बिहू के पहले दिन गोरू बिहू का पालन किया गया। गोरू बिहू के मौके पर प्रत्येक ग्रामीणों के मुंह से यह शब्द बोलते, ‘लाउ (लौकी) खा, बैंगना (बैंगन) खा’ सुना गया।
आम तौर पर रंगाली बिहू का उत्सव सात नामों से सात दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन गोरु बिहू, उसके बाद मानुह बिहू, गोसाई बिहू, तांतर बिहू, नांगल बिहू, जीयरी या सेनेही बिहू और सेरा बिहू के रूप में मनाया जाता है।
ज्ञात हो कि सात दिवसीय रंगाली बिहू के पहले दिन गोरू बिहू के रूप में मनाया जाता है। सुबह सभी ग्रामीण अपने पशुओं को नदी, तालाब आदि में स्नान कराने के बाद उसके गले में लौकी, बैंगन आदि की माला पहनाते हैं तथा एक विशेष प्रकार के पेड़ के माखियाती के पत्तों को पीठ पर ठोंकते हुए कहते हैं कि लौकी खा, बैंगन खा और दिन-दिन मोटा होते जा। इसके साथ ही पशुओं की पूजा की जाती है। भारत के सभी उत्सव कृषि से संबंधित हैं। रंगाली बिहू भी कृषि से संबंधित उत्सव है।
नदियों, तालाब, बिल (झील), झरना या खेतों में हो, गायों को स्नान कराने के बाद वार्षिक खेती के लिए किसान तैयार होते हैं। गायों को नहलाने के साथ-साथ सभी खुशी-खुशी एक साथ बिहुनाम का आनंद लेते हैं। इस दौरान ढोल की थाप पर नृत्य और बिहू गीत गाये जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से राज्य में बोहाग (रंगाली) बिहू को बेहद संक्षेप में मनाया जा रहा था। इस बार कोरोना महामारी की कोई पाबंदी नहीं है, जिसके चलते पूरे राज्य में हर कोई रंगाली बिहू को खुलकर मना रहा है।