Bharat Ratna : डा. अंबेडकर भारत रत्न ही नहीं विश्व रत्न हैंः आनंद श्रीकृष्णा

-अंबेडकर जयंती पर साहित्य अकादमी ने परिसंवाद का किया आयोजन

नई दिल्ली, 14 अप्रैल (हि.स.)। साहित्य अकादमी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर गुरुवार को वेबलाइन साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत “डॉ. अंबेडकर: भारतीय मेधा के प्रतिमान” विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया। आभासी मंच पर आयोजित इस परिसंवाद का उद्घाटन प्रख्यात तेलुगु लेखक प्रो. कोलकलूरी इनोक ने किया।

प्रो. इनाेक ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने मानसिक दासता के विरुद्ध युद्ध छेड़ा। वे वैश्विक संविधान के गहरे जानकार थे। उन्होंने विभिन्न विषयों के साथ स्त्री शिक्षा पर बहुत जोर दिया। उन्होंने अपने ज्ञान से विश्वविद्यालयों की शिक्षा सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किया।

प्रख्यात हिंदी लेखक आनंद श्रीकृष्णा ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने पेट की भूख की बजाय अपने ज्ञान की भूख मिटाने पर ध्यान केंद्रित किया और अनेक विषयों में उच्च डिग्रियां हासिल कीं। उन्हें केवल भारत रत्न ही नहीं बल्कि विश्व रत्न के रूप में याद किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात मराठी लेखिका उर्मिला पवार ने की। पवार ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने उस धर्मशास्त्र का हमेशा विरोध किया जो स्त्री को गुलाम बनाने की आजादी देता था। उन्होंने स्त्री समानता के लिए डॉ. अंबेडकर के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह लड़ाई केवल दलित स्त्रियों की न होकर हर भारतीय स्त्री के सम्मान की लड़ाई थी ।

कार्यक्रम को साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम, सुदेश कुमार तनवर, वासुदेव सुनानी, अनिता भारती और नामदेव ने भी संबोधित किया। वासुदेव सुनानी ने उन्हें 64 विषयों के ज्ञाता के रूप में याद करते हुए कहा कि उनके सभी कार्य मानवता की रक्षा के लिए थे और उनकी मेधा को जाति का चश्मा उतार कर देखने की जरूरत है तभी उनकी प्रतिभा का सच्चा सम्मान हो पाएगा।

जयप्रकाश कर्दम ने उनके सामाजिक दर्शन पर बात करते हुए कहा कि स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा वह तीन आधार थे, जिसके लिए उन्होंने आजीवन लड़ाई लड़ी। उनके सारे संघर्ष केवल दलितों के लिए नहीं बल्कि भारतीय समाज में हाशिए पर रह रहे श्रमिक, किसान और स्त्रियों के लिए थे। सुदेश कुमार तनवर ने कहा कि डॉ.अंबेडकर का चिंतन, समावेशी चिंतन था।

अनीता भारती ने डॉ. अंबेडकर का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी मेधा का दायरा बहुत विस्तृत था और वे ऐसे स्वप्नदृष्टा थे, जो अपने सभी सपनों को साकार होते देखने के लिए दिनरात मेहनत करते थे। नामदेव ने उन्हें युग प्रवर्तक के रूप में याद किया। कार्यक्रम के आरंभ में सभी का स्वागत करते हुए साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने कहा कि डॉ. अंबेडकर की मेधा का वृत्त बहुत विशाल था और उस पर बात करने के लिए ऐसे कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *