नई दिल्ली , 05 अप्रैल (हि.स.)। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने मंगलवार को एक नर्सिंग सोशियोलॉजी की पाठ्यपुस्तक में छपे स्त्री विरोधी गद्यांश के बारे में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखा है। नर्सिंग समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक में लिखा एक गद्यांश हाल ही में सोशल मीडिया में वायरल हुआ जिसमें दहेज के गुण और दोषों के बारे में बात की गई थी।
लेखक ने लिखा था की आकर्षक दहेज की वजह से सुंदर न दिखने वाली लड़कियों की शादी में सहायता मिलती है। दिल्ली महिला आयोग ने इस मामले में मीडिया रिर्पोटों का संज्ञान लेते हुए शिक्षा मंत्री को पत्र लिखा और मामले में निराशा व्यक्त करते हुए दहेज जैसी महिला द्वेषी कुप्रथा को बढ़ावा देने वाले लेखक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
इसके अलावा आयोग की अध्यक्षा ने नर्सिंग छात्रों के लिए इस पाठ्यपुस्तक को मंजूरी देने में शामिल संबंधित सभी अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की भी मांग की। उन्होंने देश में विद्या के “ लिंग समावेशी” तथा “लैंगिक संवेदनशील” ना होने पर शिक्षा मंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुए विस्तृत सिफारिशें भी दीं। अपने पत्र में स्वाति मालीवाल ने ये भी कहा की ये गद्यांश जोकि दुर्भाग्य से नर्सिंग छात्राओं को पढ़ाया जा रहा था वह भारत सरकार के ‘बेटी बचाओ और बेटी पढाओ’ के उद्देश्य को पूरी तरह विफल करता है।
आयोग की अध्यक्षा ने अपने पत्र के माध्यम से इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह घटना देश में हुई कोई पहली घटना नहीं थी और हाल ही में सीबीएसई द्वारा दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में दिए गए स्त्री-विरोधी गद्यांश की ओर भी इशारा किया। पत्र में युवा छात्रों के दिमाग पर किताबों में दहेज का महिमामंडन करने वाले ऐसे अंशों के प्रभाव के बारे में भी गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
आयोग ने गद्यांश के लेखक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए कहा किं ये बेहद निराशा पूर्ण है कि आज तक हमारे देश में, कई क्षेत्रों में, पाठ्यपुस्तकों एवं प्रश्न पत्रों में पुरुषवाचक सर्वनामों का बेझिझक उपयोग किया जाता है। आयोग ने अपनी सिफारिशों के माध्यम से भारत सरकार से सभी पाठ्यक्रम को लैंगिक समावेशी एवं संवेदनशील बनाने हेतु एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स बनाने की मांग करी। आयोग ने कहा की इस टास्क फोर्स का काम अलग-अलग क्षेत्रों को महिलाओं के दृष्टिकोण से समझना तथा पाठ्यक्रम में सुधार एवं सुझाव देना होना चाहिए ।
इसके अलावा डीसीडब्ल्यू ने उन व्यक्तियों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए दंडात्मक प्रावधानों को बनाने की भी सिफारिश की जो अपने लेखन के माध्यम से छात्रों के बीच स्त्री विरोधी और पितृसत्तात्मक विचारों को फैलाने को सही ठहराते हैं। साथ ही डीसीडब्ल्यू ने महिलाओं की सहमति, महिलाओं के प्रति सम्मान, उनके कानूनी अधिकारों तथा महिलाओं के खिलाफ अपराधों के नकारात्मक प्रभावों को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश करी।
डीसीडब्ल्यू की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने मामले पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा,“आकर्षक दहेज को एक योग्यता के रूप में सूचीबद्ध करने वाले इस गद्यांश को पढ़कर मैं स्तब्ध रह गई जो लेखक के अनुसार सुंदर न दिखने वाली लड़कियों की शादी करने में मदद करता है। यह दुखद है कि आज के भारत में भी, इस तरह की रूढ़ीवादी मान्यताएं और दहेज जैसी बुरी प्रथा का महिमा मंडन तथा शिक्षण हो रहा है।
दहेज की बुरी प्रथा ने न जाने हमारे देश में कितनी जिंदगियों को तबाह कर दिया और ये पुस्तक उसी प्रथा को बढ़ावा दे रही थी।”