पहाड़ी ग्रामीण और शहरी परिदृश्य में आतंकी कार्रवाई से निपटने का हुआ सैन्य अभ्यास
– शहरी इलाकों में काउंटर-टेरर ऑपरेशन में भारी नुकसान न होने देने की तकनीक सीखी
नई दिल्ली, 30 मार्च (हि.स.)। उज्बेकिस्तान के यांगियारिक में भारतीय सेना के साथ चल रहा संयुक्त प्रशिक्षण सैन्य अभ्यास ‘डस्टलिक’ का तीसरा संस्करण खत्म हो गया है। इस अभ्यास में भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की एक प्लाटून शामिल हुई है। युद्ध कौशल को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से यह अभ्यास दोनों देशों की सेनाओं के बीच सहयोग बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है। दोनों देशों की सेनाओं ने पहाड़ी ग्रामीण और शहरी परिदृश्य में आतंकी कार्रवाई से निटपने की कुशलता विकसित करने का सैन्य अभ्यास किया।
इस अभ्यास का पहला संस्करण नवम्बर, 2019 में उज्बेकिस्तान में आयोजित किया गया था। दूसरा संस्करण मार्च, 2021 में रानीखेत (उत्तराखंड) में आयोजित किया गया था। भारत-उज्बेकिस्तान संयुक्त सैन्य युद्धाभ्यास ‘डस्टलिक’ का तीसरा संस्करण 22 मार्च से उज्बेकिस्तान के यांगियारिक में शुरू हुआ था। संयुक्त अभ्यास के दौरान दोनों सैन्य टुकड़ियों को अर्ध-शहरी वातावरण में आतंकवाद रोधी अभियानों में कार्रवाई के लिए प्रशिक्षण हासिल करने का अवसर मिला। यह अभ्यास 24 घंटे लंबे सत्यापन के बाद समाप्त हुआ, जिसमें अभ्यास के आखिरी दौर में दोनों सेनाओं को नकली परिदृश्यों में संचालन की चुनौतियों से गुजारा गया।
अभ्यास के अंतिम दो दिन ‘वेलिडेशन एक्सरसाइज’ हुई, जिसमें दोनों टुकड़ियों ने मिलजुलकर चरमपंथी समूहों के खिलाफ सिम्युलेटेड ऑपरेशन किए। इस अभ्यास के दौरान मैदानी परिस्थितियों में क्रॉस ट्रेनिंग और कॉम्बैट कंडीशनिंग से लेकर खेल तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्र में व्यापक हिस्से को कवर किया गया। युद्धाभ्यास डस्टलिक का मकसद दोनों सेनाओं के बीच रक्षा सहयोग के स्तर को आगे बढ़ाना था ताकि भविष्य में भारत-उज्बेकिस्तान के बीच मित्रता के पारंपरिक बंधन को और मजबूत किया जा सके। दोनों देशों की सेनाओं ने पहाड़ी ग्रामीण और शहरी परिदृश्य में आतंकी कार्रवाई से निटपने की कुशलता विकसित करने का सैन्य अभ्यास किया।
अभ्यास में हिस्सा लेने गई भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स बटालियन को देश की आजादी से पूर्व और बाद के महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लेने का अनूठा गौरव प्राप्त है। इस यूनिट को आठ बार स्वतंत्रता-पूर्व युद्ध सम्मान से सम्मानित किया गया है। स्वतंत्रता के बाद इसने 1965 के युद्ध में थिएटर सम्मान ‘राजस्थान’ और 1971 के युद्ध में युद्ध सम्मान ‘जरपाल’ अर्जित किया है। विशेष बलों पर नजर रखने की तकनीक, हाई-टेक कमांड पोस्ट के माध्यम से निगरानी, हेलीकॉप्टरों से संचालन और खुफिया-आधारित सर्जिकल स्ट्राइक इस अभ्यास के मुख्य आकर्षण रहे। ड्रिल के एक मॉड्यूल में दोनों सेनाओं ने एक-दूसरे से रिहायशी इलाकों में काउंटर-टेरर ऑपरेशन के दौरान भारी नुकसान न होने देने की तकनीक सीखी। दोनों सेनाओं ने पर्वतीय, ग्रामीण और शहरी परिदृश्य में काउंटर आतंकवादी अभियानों के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता और कौशल को भी साझा किया।