नई दिल्ली, 30 मार्च (हि.स.)। साहित्य अकादमी के प्रवासी मंच कार्यक्रम में बुधवार को जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के भारतविद् रामप्रसाद भट्ट ने “हिंदी व्याकरणिक परंपरा का इतिहास” विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी व्याकरणिक परंपरा के इतिहास पर पुनर्विचार आवश्यक है। अभी तक हिंदी के व्याकरण के इतिहास लेखन को हम राजा शिवप्रसाद ‘सितारे हिंद’ या अयोध्या प्रसाद खत्री से प्रारंभ मानते हैं, जो 1875 के आसपास लिखे गए थे लेकिन अभी हुए नए शोधों से पता चला है कि इससे दो शताब्दी पहले ही सूरत में हिंदी व्याकरण के दो इतिहास लिखे गए। पहला इतिहास एक डच योहन योशुआ केटेलार ने 1698 में लिखा और दूसरा इतिहास 1704 में एक फ्रेंच पादरी कोपुचिन मिशनरी फादर फ्राकोइस दे तूर ने लिखा था।

रामप्रसाद ने कहा कि किसी भी भाषा में उस देश का भूगोल, संस्कृति और सामाजिक इतिहास झलकता है। अत: उसका सम्मान और संरक्षण बहुत जरूरी है। जर्मनी में भारतीय भाषाओं के संरक्षण को लेकर कई उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। उन्होंने भारत में हिंदी शब्दकोश में नए शब्द न जोड़े जाने, पत्रकारिता में हिंदी की जगह बढ़ते हिंग्लिश शब्दों, हिंदी के मानकीकरण को लागू न हो पाने और हिंदी साहित्य के विदेशी भाषाओं में बहुत कम हो रहे अनुवादों पर भी चिंता व्यक्त की।
भारतविद् रामप्रसाद और उनके अन्य साथी अभी फ्राकोइस दे तूर के व्याकरण पर शोध कार्य कर रहे हैं। इसका जर्मन अनुवाद कुछ समय बाद आएगा। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। उन्होंने कहा कि हमें अपनी अपनी मातृभाषा का प्रयोग और सम्मान करना चाहिए तभी हम उन भाषाओं से जुड़ी भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को बचा पाएंगे।