नई दिल्ली, 25 मार्च (हि.स.)। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का आश्वस्त किया है कि चीन एशिया में अपना वर्चस्व नहीं चाहता। चीन अपने प्रभुत्व वाले एक ध्रुवीय एशिया के पक्ष में नहीं है तथा इस महाद्वीप में भारत की भूमिका को स्वीकार करता है।
भारत यात्रा पर आए वांग यी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से लद्दाख में सैन्य स्थिति तथा द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलूओं पर विचार विमर्श किया। इस संबंध में चीन की ओर से जारी किए गए वक्तव्य में कहा गया कि जब चीन और भारत एक आवाज में बोलेंगे तब पूरी दुनिया उसे ध्यान से सुनेगी। वक्तव्य में आपसी संवाद और समन्वय को बढ़ावा देकर दुनिया में बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को ताकत देने पर जोर दिया गया है।
चीन की ओर से कहा गया कि द्विपक्षीय संबंधों के बारे में दीर्घकालिक दृष्टि अपनायी जानी चाहिए। दोनों देशों को एक दूसरे के विकास को आपसी हितों की बढ़ोत्तरी के रूप में देखना चाहिए। साथ ही दोनों देशों को आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं में भागीदारी करनी चाहिए।
चीन ने कहा कि दोनों देश एक दूसरे के लिए खतरा नहीं है तथा दोनों के सामने विकास के अवसर हैं।
सीमा विवाद को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की वकालत करते हुए चीन ने कहा कि सीमा विवाद से इतर दोनों देशों को सहयोग करना चाहिए।
चीन की ओर से दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग का एक प्रस्ताव रखा गया। वक्तव्य में कहा गया कि दक्षिण एशिया में चीन और भारत के सहयोग की संभावनाओं के बारे में दोनों देश अनुकूल हैं तथा इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जा सकता है। वक्तव्य में वर्ष 2022 और अगले वर्ष 2023 को एशिया के कालखंड की संज्ञा देते हुए कहा गया कि इस दौरान भारत-चीन जी20, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन की शिखरवार्ताओं का आयोजन करेंगे।