उत्तरकाशी (उत्तराखंड), 25 मार्च (हि.स.)। भारत-चीन युद्ध के छह दशक बाद भटवाड़ी तहसील के जादुंग और नेलांग के लोगों में घरवापसी की उम्मीद जगी है। जिला अधिकारी मयूर दीक्षित ने शुक्रवार को इस संबंध में अफसरों के साथ बैठक की। यह बैठक कलेक्ट्रेट स्थित एनआईसी सभागार में हुई। जिला अधिकारी दीक्षित ने कहा कि 28 और 29 मार्च को जादुंग और अप्रैल में नेलांग गांव का संयुक्त सर्वे कराया जाएगा।
बैठक में जादुंग एवं नेलांग के विस्थापित ग्रामीण, सेना, आईटीबीपी, राजस्व विभाग, वन विभाग, उद्यान विभाग, पशुपालन विभाग, लोक निर्माण विभाग और विद्युत विभाग के अधिकारियों ने जादुंग और नेलांग के विस्थापितों को पुनर्वासित करने पर विचार-विमर्श किया। बैठक में मौजूद दोनों गांवों के विस्थापित ग्रामीणों ने फिर बसने की इच्छा जताई।
उत्तरकाशी के जिला अधिकारी मयूर दीक्षित के मुताबिक संयुक्त सर्वे में दोनों गांवों की भूमि और उसके मालिकों का चिह्नीकरण किया जाना है। 1962 में भारत -चीन युद्ध के समय यह के लोगों को सुरक्षा की दृष्टि से ग्राम बगोरी और वीरपुर डुंडा में विस्थापित किया गया था। तब से यह लोग वहीं जीवनयापन कर रहे हैं।
इस बैठक में मुख्य विकास अधिकारी गौरव कुमार, उप निदेशक गंगोत्री नेशनल पार्क रंगनाथ पाण्डेय, पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार राय, सेनानी 35वीं वाहिनी आईटीबीपी अशोक सिंह बिष्ट, सेना के मेजर भारत यादव, मेजर हसन खान, उप जिलाधिकारी मीनाक्षी पटवाल, जाड़ भोटिया जन कल्याण समिति के अध्यक्ष सेवक राम भण्डारी आदि ने हिस्सा लिया।
नेलांग को अब इनरलाइन की बाध्यता से मुक्त किया जा चुका है। जादुंग के लिए इनरलाइन परमिट के साथ साथ गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन की अनुमति लेनी अनिवार्य है। यहां के विस्थापितों को उम्मीद है कि घरवापसी के बाद परंपरागत व्यवसाय भेड़ पालन में बढ़ोतरी होगी। दोनों गांवों में पर्यटकों के पहुंचने से भी आय के संसाधन बढ़ेंगे। उल्लेखनीय है कि 1962 से पहले नेलांग में करीब 40 और जादुंग में करीब 30 परिवार रहते थे। ग्रामीणों की नेलांग में 375.61 हेक्टेयर और जादुंग में 8.54 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है।
उल्लेखनीय है कि सामरिक दृष्टि से दोनों गांव जादुंग और नेलांग भारत के लिए बेहद अहम हैं। यह दोनों गांव समुद्र तल से चार हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं।