मॉस्को, 06 मार्च (हि.स.)। यूक्रेन पर रूसी सेना के आक्रमण के फैसले को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कठिन फैसला बताते हुए सवाल उठाया है कि आखिर डोनबास में 13 से 14 हजार लोगों के क़त्ल के बाद भी पश्चिम देश क्यों चुप रहे। हालांकि, यूक्रेन के खिलाफ स्पेशल ऑपरेशन चलाना आसान फैसला नहीं था लेकिन एक के बाद एक घटनाओं के चलते यह हमला जरूरी हो गया था।
पुतिन के 24 फरवरी को आदेश पर यूक्रेन पर हमला शुरू हुआ जिसे ज्यादातर पश्चिमी देशों ने अनुचित और गैरकानूनी करार दिया है। साथ ही इसे लेकर रूस पर कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि मैंने ऑपरेशन की शुरुआत में कहा था कि यूक्रेन पर हमला बिना संदेह एक कठिन फैसला था। पुतिन ने समझाया कि यूक्रेन में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी। उन्होंने 2014 के ‘असंवैधानिक तख्तापलट’ का भी जिक्र किया जिसे पश्चिमी देशों का सक्रिय रूप से समर्थन मिला था। पुतिन ने आरोप लगाया कि पश्चिम ने ‘असंवैधानिक तख्तापलट’ को प्रभावित करने के लिए 5 बिलियन डॉलर खर्च किए।
पुतिन ने दावा किया कि यूक्रेन के कुछ हिस्सों ने सत्ता परिवर्तन को खारिज कर दिया। दक्षिणपूर्वी डोनेट्स्क और लुहान्स्क इलाके में इसका विरोध करने वालों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। उन्होंने याद दिलाया कि कीव सरकार ने डोनबास में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चलाया था। उनके विफल होने के बाद दोनों पक्षों की ओर से मिन्स्क समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे संघर्ष से शांतिपूर्ण निकास के लिए रोडमैप तैयार किया गया।
पुतिन के अनुसार मास्को ने यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए और डोनेट्स्क व लुगांस्क के लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए हर संभव प्रयास किया लेकिन कीव ने अपने लोगों पर अत्याचार किया और डोनबास पर गोलाबारी भी की।