नई दिल्ली, 25 फरवरी (हि.स.)। जमात-ए-इस्लामी हिंद ने भारत सरकार से रूस और यूक्रेन में छिड़े संघर्ष को तत्काल प्रभाव से समाप्त कराने के लिए अपनी भूमिका निभाने की मांग की है। अमीर-ए-जमात इंजीनियर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रूस पर दबाव बनाने और यूक्रेन पर रूस के जरिए किए जा रहे हमलों को रोकने के लिए अपनी भूमिका निभाने की मांग की है।
जमात का कहना है कि भारत इस मामले में अपनी भूमिका निभा सकता है और भारत सरकार को चाहिए कि वह इस सिलसिले में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करें और यूक्रेन में किए जा रहे हमलों को रोकने के लिए अपनी अहम भूमिका निभाए। जमात का कहना है कि इस हमले की वजह से सैकड़ों लोग मारे गए हैं और हजारों लोग प्रभावित हुए हैं।
अमीर-ए-जमात सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि दुनिया अभी कोरोना के कहर से उबर भी नहीं पाई है और अब लोगों पर जंग थोपी जा रही है। पूरी आशंका हैं कि यह फौजी कार्रवाई जंग का रूप ले लेगी। अगर ऐसा हुआ तो यह दुनिया के लिए तबाही का कारण होगा। हम एक सभ्य दुनिया में रहते हैं जहां राष्ट्रों के बीच मतभेदों और संघर्षों को कूटनीति और बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए।
अमीर-ए-जमात ने भारत सरकार से मांग करते हुए कहा है कि भारत सरकार को चाहिए कि वह इस विवाद को सुलझाने में सकारात्मक कूटनीतिक भूमिका निभाए और हमलावर देशों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे ताकि उन्हें तत्काल जंगबंदी के लिए राजी किया जा सके। विवाद के हल के लिए बातचीत का रास्ता अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा हम भारत सरकार से यह भी मांग करते हैं कि यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाए। सभी को भूमि और हवाई मार्गों का इस्तेमाल करके जल्द से जल्द मुफ्त भारत वापस लाया जाए। छात्र हवाई यात्रा की उच्च लागत वहन नहीं कर सकते। इसलिए यात्रा व्यवस्था और यात्रा व्यय दोनों में सरकार को तत्काल और पूर्ण सहयोग करने की आवश्यक है।
अमीर-ए-जमात ने अपने बयान में कहा कि इस विवाद ने एक बार फिर विश्व शक्तियों के पाखंड को बेनक़ाब किया है। वही ताकतें जिन्होंने हाल के दिनों में ईराक, अफगानिस्तान और अन्य देशों को तबाह किया था, अब रूसी आक्रमण पर विलाप कर रही हैं। महाशक्तियों के ये दोहरे मापदंड वैश्विक अशांति का सबसे बड़ा कारण हैं। अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं को लोकतांत्रिक और मानवीय आधार पर पुनर्गठित किया जाए और दुनिया ज़ालिम और मज़लूम (उत्पीड़ित) में भेद किए बिना सिद्धांतों के आधार पर समान दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करें।