कोलंबो, 28 जनवरी (हि.स.)। आतंक के खिलाफ कार्रवाई में अपने कानून को मजबूत मानने वाले श्रीलंका को यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के दबाव में झुकना पड़ा है। श्रीलंका 43 साल बाद अपने आतंकवाद रोधी कानून में संशोधन को राजी हो गया है।
आतंकवाद का लंबा दौर झेल चुके श्रीलंका ने 1979 आतंकवाद निरोधी कानून बनाया था। यह कानून पुलिस को बिना किसी मुकदमे के संदिग्धों को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है। किसी व्यक्ति पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना का संदेह होने पर बिना वारंट न सिर्फ उसकी गिरफ्तारी, बल्कि उसके परिसर की तलाशी की अनुमति भी इस कानून के तहत मिलती है। यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का मानना है कि यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। ये संस्थाएं लगातार श्रीलंका पर इस कानून में बदलाव का दबाव बना रही थीं।
जेनेवा में मार्च में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का सत्र आयोजित होना है। इस सत्र के दौरान श्रीलंका में मानवाधिकारों की स्थिति और प्रगति की समीक्षा की जानी है। इस सत्र से पहले सरकार ने अधिसूचना जारी कर कहा कि आतंकवाद निरोधक कानून में संशोधन किया जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि बदलावों के बाद यह सुनिश्चित किया जाएगा कि संदिग्धों को उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और राहत पाने की अनुमति दी जाए। संशोधन में रिश्तेदारों को बंदी के साथ संवाद की अनुमति व हिरासत में व्यक्ति की कानूनी पहुंच सुनिश्चित करने का भी प्रस्ताव है। साथ ही नजरबंदी की अवधि 18 महीने से घटाकर 12 महीने कर दी जाएगी।