Matrimonial rape : वैवाहिक रेप के मामले पर दलील रखने वाले वकीलों को झेलनी पड़ रही आलोचना

नई दिल्ली, 28 जनवरी (हि.स.)। वैवाहिक रेप के मामले पर दलील रखने वाले वकीलों को आलोचना झेलनी पड़ रही है। आज ये बातें वकील जे साईं दीपक और करुणा नंदी ने दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष सुनवाई के दौरान बताई।

सुनवाई के दौरान वकील साईं दीपक ने कोर्ट से कहा कि उनकी दलीलों को मीडिया ने गलत तरीके से रिपोर्ट किया है, जिसकी वजह से उन्हें कई तरह आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा। साईं दीपक ने कहा कि मेन वेलफेयर ट्रस्ट पति-पत्नी के बीच हिंसा की बात को स्वीकार करता है। साईं दीपक के बाद वकील करुणा नंदी ने कहा कि उन्हें रेप की धमकी मिल रही है। इसलिए इन बातों पर ध्यान देने की जरुरत नहीं है। तब कोर्ट ने कहा कि जब सुनवाई खत्म होगी तब उन्हें भी ये सब झेलना पड़ेगा।

27 जनवरी को सांई दीपक ने कहा था कि इस मामले को कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि मेरा ये साफ मानना है कि जब विधायिका कोई फैसला नहीं ले रही है, तब न्यायपालिका को अपनी राय रखनी चाहिए, लेकिन जब मामला नीतिगत हो तो कोर्ट को फैसला नहीं करना चाहिए। अगर न्यायपालिका अपनी सीमा को पार करती है तो ये काफी खतरनाक परंपरा साबित होगा। तब कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट की ओर से इसी मसले पर जारी किए गए नोटिस का जिक्र करते हुए कहा था कि कोर्ट को किसी न किसी तरीके से हल निकालना ही होगा। हमारे लिए हर मसला महत्वपूर्ण है।

25 जनवरी को सुनवाई के दौरान एनजीओ ह्दे (Hridey) ने कहा था कि पति पत्नी के बीच बने यौन संबंध को रेप नहीं करार दिया जा सकता है। इसे ज्यादा से ज्यादा यौन प्रताड़ना कहा जा सकता है। एनजीओ की ओर से पेश वकील आरके कपूर ने ये बातें कही थीं। सुनवाई के दौरान कपूर ने कहा था कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत क्रूरती की परिभाषा से ये साफ हो जाएगा कि पति और पत्नी के बीच बने यौन संबंध रेप नहीं कहे जा सकते हैं। उन्होंने कहा था कि एक पत्नी अपने अहंकार की पूर्ति के लिए अपने पति को कोई खास दंड देने के लिए संसद को कानून बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। उन्होंने कहा था कि संसद बेवकूफ नहीं है कि उसने रेप के अपवाद के प्रावधान के तहत पति को छूट दे दी है, लेकिन घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति को कोई छूट नहीं दी है।

इसके पहले सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304-बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है।

इसके पहले एक दूसरे एमिकस क्युरी राजशेखर राव ने कहा था कि अगर कानून भेदभावपूर्ण और मनमाना हो और वो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो तो ये कोर्ट का कर्तव्य है कि उसे खत्म करे। उन्होंने वैवाहिक रेप को अपराध करार देने की मांग की थी। राव ने कहा था कि आज के समय में किसी पति को भी इसकी अनुमति नहीं है कि वो अपनी पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाए। उन्होंने कहा था कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है को कोर्ट आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकता है। राव ने कहा था कि कोर्ट को इस मामले में संविधान की धारा 14 और 21 की व्याख्या करनी चाहिए।

24 जनवरी को केंद्र सरकार ने कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध बनाने में परिवार के मामले के साथ-साथ महिला के सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उसके लिए इस मसले पर तत्काल अपना रुख बताना संभव नहीं है। अगर केंद्र आधे मन से अपना पक्ष रखेगी तो ये नागरिकों के साथ अन्याय होगा। 17 जनवरी को भी केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट से कहा था कि वो वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले पर अभी रुख तय नहीं किया है। मेहता ने कोर्ट से कहा था कि ये 2015 का मामला है और अगर कोर्ट केंद्र को समय दे तो वो कोर्ट को बेहतर मदद कर पाएंगे। तब जस्टिस शकधर ने कहा था कि एक बार सुनवाई शुरु हो जाती है तो हम उसे खत्म करना चाहते हैं।

बतादें कि इसके पहले केंद्र सरकार ने वैवाहिक रेप को अपराध करार देने का विरोध किया था। 29 अगस्त 2018 को केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से शादी जैसी संस्था अस्थिर हो जाएगी और ये पतियों को प्रताड़ित करने का एक जरिया बन जाएगा। केंद्र ने कहा था कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के प्रमाण बहुत दिनों तक नहीं रह पाते।

याचिका एनजीओ आर आईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति समेत दो और लोगों ने दायर की है। याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह अपवाद विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों की ओर से की गई यौन प्रताड़ना की खुली छूट देता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *