नई दिल्ली, 25 जनवरी (हि.स.)। देश में कूड़ा बीनने वाले लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अधिक बेहतर नहीं है। दस में से छह कचरा बीनने वाले लोगों के पास अपने बैंक खाते नहीं हैं । वहीं अधिकांश ऐसे लोग अस्थाई जगहों या टीन शेड्स में रहने को मजबूर हैं। यूएनडीपी इंडिया (यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम इंडिया) ने इस विषय को लेकर एक विस्तृत विश्लेषण जारी किया है। 14 शहरों के 9300 सफाई कर्मचारियों से मिली जानकारी के आधार पर जारी किए गए विश्लेषण को अब तक का सबसे बड़ा आकलन माना जा रहा है। कचरा बीनने वाले लोगों की स्थिति के विश्लेषण को नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत द्वारा मंगलवार को औपचारिक रूप से जारी किया गया।
यूएनडीपी के आर्थिक विश्लेषण के मुताबिक केवल 21 प्रतिशत कूड़ा बीनने वालों को जनधन योजना का लाभ मिला, जबकि अधिकांश ने कहा कि अब भी डिजिटल पेमेंट उनकी पहुंच से बाहर है। आधार और मतदाता पहचान पत्र के अतिरिक्त 60 से 90 प्रतिशत कूड़ा बीनने वालों के पास अन्य किसी तरह का औपचारिक प्रमाणपत्र जैसे जन्म प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमामणपत्र, रोजगार कार्ड आदि नहीं है। वहीं, 50 प्रतिशत कूड़ा बीनने वालों के पास अपना राशन कार्ड अवश्य है। केवल पांच प्रतिशत से भी कम कूड़ा बीनने वालों के पास अपना स्वास्थ्य बीमा है। अधिकांश कूड़ा बीनने वाले लकड़ी आधारित ईंधन पर खाना बनाते हैं।
इस अवसर पर उपस्थित अमिताभ कांत ने कहा कि कचरा बीनने वाले सही मायने में अदृश्य पर्यावरणविद् हैं जो कचरे के निस्तारण में अहम भूमिका निभाते हैं। इनका ठोस प्लास्टिक कचरा प्रबंधन में भी अहम योगदान होता है। नीति आयोग, आवास एवं विकास मंत्रालय तथा यूएनडीपी के साथ मिलकर समाज के इस अहम वर्ग के उत्थान में अपना योगदान देते रहेंगे।
यूएनडीपी इंडिया के इस आर्थिक विश्लेषण के मुताबिक में कूड़ा बीनने वाली महिलाएं और पुरूष दोनों ही सामाजिक व आर्थिक स्थिति एक सामान है। आकलन में पाया गया कि कूड़ा बीनने वाले लोग अपनी आय और व्यवसाय न बदल पाने को लेकर बाध्य हैं। इसके लिए यूएनडीपी ने कई तरह की कल्याणकारी योजनाओं की सिफारिश की है।