अब तीर्थ पुरोहितों का आंदोलन होगा खत्म, 533 दिनों से चल रहा है देवस्थानम बोर्ड का विरोध

देहरादून, 30 नवंबर (हि.स.)। आखिरकार उत्तराखंड सरकार के चार धाम देवस्थानम बोर्ड को भंग किए जाने के ऐलान के बाद जहां तीर्थ पुरोहिताें ने अपनी खुशी जताई हैं वहीं अब 533 दिनों से चले आ रहे इस आंदोलन के समाप्त होने की आस जाग गई है। वर्ष 2019 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के 51 मंदिरों को चारधाम देवस्थानम बोर्ड के तहत लाने का कार्य किया था।

इस बोर्ड गठन के समय से ही पंडा पुरोहित और हक-हकूधारी इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इन लोगों के विरोध को दरकिनार करते हुए देवस्थानम बोर्ड को लागू रखा। उनका कहना था कि इन धामों में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां सुविधाओं का अभाव है। ऐसे सुव्यवस्था बनाने के लिए नये बोर्ड की आवश्यकता थी। इससे पूर्व वर्ष 1939 में बदरी-केदार समिति का गठन किया गया, जो बदरी-केदार की व्यवस्थाओं को देख रही थी लेकिन यह समिति व्यवस्थाओं को सुचारू करने में सक्षम नहीं थी। इसमें बदरीनाथ से जुड़े 29 और केदारनाथ से जुड़े 14 मंदिर, कुल 45 मंदिरों की जिम्मेदारी बदरी-केदार समिति के पास थी।

यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के लिए कोई नहीं थी व्यवस्था-

वर्ष 1939 से 2000 तक बदरी-केदार मंदिर समिति अधिनियम चल रहा था। इसके पास यमुनोत्री और गंगोत्री के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड के प्रभावी होने के बाद 51 मंदिर एक बोर्ड के अधीन आ गए थे और 80 साल से चल रही बदरी-केदार मंदिर समिति की परंपरा समाप्त हो गई।

बीकेटीसी प्रभावकारी नहीं हो पा रही थी-

क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) प्रभावकारी नहीं हो पा रही थी और प्रतिवर्ष यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी जिसके कारण गंगोत्री धाम के लिए गंगोत्री मंदिर समिति तथा यमुनोत्री धाम के लिए यमुनोत्री मंदिर समिति अस्तित्व में आई और प्रबंधन में जुट गई। इसके बाद भी व्यवस्थाएं सुचारू नहीं हो पा रही थी।

त्रिवेंद्र सरकार ने बेहतर सुविधाओं के लिए लिया था यह फैसला-

तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने 2019 में यह निर्णय लिया कि वैष्णोदेवी के श्राइन ट्रस्ट की तर्ज पर उत्तराखंड में भी बोर्ड गठित हो जिसमें बदरीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री समेत सभी मंदिर शामिल हों। वैसे भी बदरीनाथ, केदारनाथ मंदिर निजी नहीं थे। इन्हें जनता के धन से बनवाया गया था, जहां भारी मात्रा में सोना, चांदी और पैसा चढ़ता है। इसका हिसाब-किताब नहीं होता है। यही सब पहले वैष्णोदेवी में भी होता था। वहां श्राइन बोर्ड बनने के बाद सबकुछ बदल गया। अब मंदिर के पैसे से ही स्कूल, अस्पताल, धर्मशालाएं तथा विश्वविद्यालय चल रहे हैं। उत्तराखंड सरकार भी ऐसा ही चाह रही थी।

14 जनवरी 2020 को एक्ट पर मुहर के बाद लागू हुआ था देवस्थानम बोर्ड-

उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनने के बाद वैष्णोदेवी तथा तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट के समान चारधाम बोर्ड बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ और 27 नवंबर 2019 को मंत्रिमंडल की बैठक में श्राइन ऐक्ट की तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक 2019 को स्वीकृति दे दी गई। पांच दिसम्बर 2019 को इसे सदन में भी पारित कर दिया गया और 14 जनवरी 2020 को राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद यह एक्ट प्रभावी हो गया तथा 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर मंडलायुक्त रविनाथ रमन को दायित्व दिया गया। इससे 80 साल पुराना अधिनियम निष्क्रिय हो गया।

देवस्थानम बोर्ड का अध्यक्ष मुख्यमंत्री को गया था बनाया-

इस बोर्ड का अध्यक्ष मुख्यमंत्री को बनाया गया। सांस्कृति मामलों के मंत्री उपाध्यक्ष मुख्य सचिव, पर्यटन सचिव, वित्त सचिव तथा केंद्र के वित्त एवं संस्कृति के सचिव पदेन सदस्य माने गए। इसके साथ ही साथ टिहरी रियासत के एक सदस्य, हिन्दू धर्मानुयायी तीन सदस्य, हिन्दू धर्म का पालन करने वाले छह विधायक, चार दानदाता तथा धार्मिक मामलों का अनुभव रखने वाले पुजारी, वंशानुगत पुजारी के तीन प्रतिनिधि इसमें शामिल किए गए। राज्य सरकार चाहती थी कि इन चार धाम की व्यवस्था सुधरे, यात्रियों का भव्य स्वागत हो और उन्हें अच्छी सुविधाएं मिले।

देवस्थानम बोर्ड बनने के साथ ही तीर्थ-पुरोहितों ने शुरू कर दिया था विरोध-

2019 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनने के बाद से ही पुरोहित, हक-हकूकधारी एवं क्षेत्रीय जनता ने इसके लिए सरकार को कोसना प्रारंभ कर दिया। उनका कहना था कि चारों धाम की पूजा पद्धति अलग-अलग है। ऐसे में एक बोर्ड के तहत इन्हें नहीं लाया जा सकता। साथ ही सदियों से चल रही इन चारों धामों की परंपरा भी चरमरा जाएगी। इसके साथ ही साथ हक हकूकधारियों का अधिकार मारा जाएगा। इसे संयोग कहें या प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण कार्य कि इन मंदिरों के पास अच्छी-खासी सम्पत्ति है। इसी संदर्भ में 60 मंदिरों को बदरीनाथ, केदारनाथ की भूसंपत्ति माना गया था।

यह प्रकरण उच्च न्यायालय नैनीताल भी पहुंचा-

यह प्रकरण उच्च न्यायालय नैनीताल पहुंच गया, जिसे भाजपा राज्यसभा सदस्य डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने अधिवक्ता के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया लेकिन 21 जुलाई 2020 को उच्च न्यायालय नैनीताल ने त्रिवेंद्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए चारधाम देवस्थानम एक्ट को चुनौती देने वाली डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका को खारिज कर दिया। डॉ.स्वामी का कहना था कि सरकार और अधिकारियों का काम अर्थ व्यवस्था, कानून व्यवस्था देखना है, मंदिर चलाना नहीं। मंदिर भक्त या उससे जुड़े लोग चलाएं, लेकिन सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह एक्ट बड़ी पारदर्शिता से बना है और मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे का पूरा रिकार्ड रखा जा रहा है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 32 का उल्लंघन भी नहीं होता।

मुख्यमंत्रियों के परिवर्तन के साथ बोर्ड को समाप्त किए जाने की जगती रही आस-

प्रदेश की सत्ता में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और त्रिवेंद्र रावत के स्थान पर तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनाए गए, उनके बाद पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की सत्ता सौंपी गई, लेकिन देवस्थानम बोर्ड का प्रकरण यथावत चलता रहा और सरकार नाराज पुरोहितों को मनाती रही। बाद में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य मनोहर कांत की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार समिति बनाई गई, जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। तीर्थ पुरोहितों को मनाने के क्रम में एक उप समिति का निर्माण किया गया जिसमे पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन पुरोहित नहीं माने और अब सतपाल महाराज की समिति तथा उच्चाधिकार प्राप्त मनोहर कांत ध्यानी की समिति की रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देवस्थानम बोर्ड को समाप्त घोषित कर दिया है। इसे लेकर पुरोहितों में बहुत हर्ष है।

मंदिर समिति की है करोड़ों की संपत्ति-

बदरीनाथ में मंदिर समिति के नाम 217 नाली और 3 मुखवा भू-संपत्ति दर्ज है। बदरीनाथ के माणा गांव में मंदिर समिति के नाम 133 नाली भू-संपत्ति दर्ज है। मौजा बामणी राजस्व ग्राम में मंदिर समिति के नाम 239 नाली भू-संपत्ति दर्ज है। जोशीमठ में मंदिर समिति के नाम 169 नाली भू-संपत्ति दर्ज है। ग्राम अणीमठ में 43 नाली भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है। अलियागढ़ (बसुली सेरा) राजस्व क्षेत्र में 186 नाली मंदिर समिति के नाम दर्ज है। पनेरगाव राजस्व क्षेत्र में 70 नाली भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है। जनपद देहरादून के डोभालवाला क्षेत्र में 21.74 एकड़ भूमि नान जेड ए में मंदिर समिति के नाम दर्ज है।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 11020 वर्ग फीट भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है। हसुवा फतेपुर में 5 बीघा भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है। महाराष्ट्र के बुल्ढाना क्षेत्र में 17 एकड़ भूमि श्री बदरी नारायण संस्थान के नाम दर्ज है। श्री केदारनाथ धाम क्षेत्र में 41 नाली भूमि श्री केदारनाथ के नाम दर्ज है। ऊखीमठ क्षेत्र में 38 नाली भूमि श्री केदारनाथ के नाम दर्ज है। संसारी क्षेत्र में 28 नाली भूमि श्री केदारनाथ के नाम दर्ज है

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