टैक्स के भारी-भरकम बोझ ने पेट्रोल-डीजल में लगाई आग

नई दिल्ली, 12 जून (हि.स.)। पेट्रोल और डीजल की कीमत ऑल टाइम हाई पर हैं। राजस्थान के श्रीगंगानगर में पेट्रोल 107 रुपये और डीजल 100 रुपये प्रति लीटर के स्तर को भी पार कर गया है। पेट्रोल और डीजल के महंगा होने की वजह मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) के भाव में आई उछाल मानी जाती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई उछाल से निश्चित रूप से पेट्रोल-डीजल की कीमत पर असर पड़ता है, लेकिन भारत में इनकी आसमान छूती कीमतों की मुख्य वजह इन पर लगने वाला भारी भरकम टैक्स है। 
जानकारों के मुताबिक पेट्रोल और डीजल पर केंद्र सरकार ने तो भारी भरकम टैक्स लगा ही रखा है, राज्य की सरकारें भी इनपर भारी भरकम टैक्स (वैट) लगाकर अपना खजाना भरने में लगी हैं। आपको बता दें कि पेट्रोल की कीमत में केंद्र और राज्य का टैक्स इतना अधिक है कि ये राजधानी दिल्ली में अपनी मूल कीमत से 1.65 गुना अधिक कीमत पर आम उपभोक्ताओं को मिल रही है। 
इस महीने की शुरुआत यानी 1 जून को की गई गणना के मुताबिक उस दिन पेट्रोल की मूल कीमत (बेस प्राइस) 35.63 रुपये प्रति लीटर रुपये थी। राजधानी दिल्ली में आम उपभोक्ताओं को मूल कीमत के साथ ही केंद्र के टैक्स के रूप में 32.90 रुपये और राज्य के टैक्स (वैट) के रूप में प्रति लीटर 21.81 रुपये चुकाना पड़ रहा था। यानी 35.63 रुपये प्रति लीटर की मूल कीमत वाले पेट्रोल के लिए 1 जून को दिल्ली में आम लोग राज्य और केंद्र का टैक्स मिलाकर 54.71 रुपये बतौर टैक्स चुका रहे थे। इसके अलावा डीलर का कमीशन प्रति लीटर 3.79 रुपये और पेट्रोल की ढुलाई प्रति लीटर 36 पैसे भी स्वाभाविक रूप से उपभोक्ताओं की जेब से ही जाते हैं। 
इसी तरह 1 जून को दिल्ली में डीजल की मूल कीमत 38.16 रुपये थी। इसके ऊपर केंद्र का टैक्स 31.80 रुपये और राज्य का टैक्स (वैट) 12.50 रुपये प्रति लीटर लग रहा था। इसके अलावा डीजल की ढुलाई प्रति लीटर 33 पैसे और डीलर का कमीशन प्रति लीटर 2.59 रुपये है। डीजल पर भी 1 जून को आम लोगों को केंद्र और राज्य के टैक्स के रूप में प्रति लीटर 43.30 रुपये चुकाना पड़ रहा था। 
पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स की वजह से आम उपभोक्ता परेशान हैं। इसी वजह से कई बार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाए जाने की मांग की जा चुकी है। लेकिन इस मांग को लेकर केंद्र और राज्यों की सरकारों के बीच एक राय नहीं बन पाने की वजह से इस मसले पर अभी तक फैसला नहीं किया जा सका है। 
जीएसटी काउंसिल की 40वीं बैठक में कुछ राज्यों की ओर से इस मसले को उठाया भी गया था, लेकिन पंजाब, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और केरल के वित्त मंत्रियों के कड़े विरोध की वजह इस पर कोई फैसला नहीं हो सका था और इस विषय को आगे के लिए टाल दिया गया था। इसके बाद जीएसटी काउंसिल की 28 मई को हुई 43वीं बैठक में भी पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाए जाने की मांग उठी थी, लेकिन कोरोना के रोकथाम के लिए काम आने वाले चिकित्सीय उपकरणों और दवाओं पर लगने वाली जीएसटी की दर में कटौती के भारी भरकम मुद्दे के आगे पेट्रोल और डीजल का मुद्दा एक बार फिर पीछे छूट गया। जीएसटी काउंसिल की आज होने वाली बैठक में भी इस विषय पर चर्चा होने की उम्मीद कम ही है।

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