दीर्घस्थायी विकास के मामले में बंगाल क्यों पीछे, जानिए विशेषज्ञों की राय

कोलकाता, 07 जून (हि.स.)। नीति आयोग की हाल ही में प्रकाशित सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल यानी दीर्घस्थायी विकास लक्ष्य (एसडीजी) की सूची में पश्चिम बंगाल को 18वां स्थान मिला है। इस सूची में 2018 की तरह केरल पहले स्थान पर है, जबकि हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु को दूसरा स्थान मिला है। तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक और उत्तराखंड हैं, जबकि चौथे स्थानी पर सिक्किम है। पिछली बार की तरह इस बार भी बिहार एसडीजी इंडैक्स में अंतिम स्थान पर रहा है। हालांकि बंगाल इस साल दो पायदान आगे बढ़ा है लेकिन इसके बाद भी पश्चिम बंगाल को 18वां स्थान मिलना राज्य में विकास संबंधी गतिविधियों की नकारात्मक तस्वीर पेश करता है। आखिर बंगाल के पिछड़ने के क्या कारण हैं। इस संबंध में हिन्दुस्थान समाचार ने कुछ आर्थिक विशेषज्ञों से बात की।  

भारतीय कृषि और ग्रामीण ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अधिकारी रहे विद्युत बसु ने कहा कि सरसरी तौर पर पश्चिम बंगाल ने 2018 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछली बार बंगाल को 20वां स्थान मिला था। यानी पश्चिम बंगाल दो पायदान ऊपर चढ़ने में सफल रहा है। सूची को और बारीकी से देखें तो पता चलता है कि कई ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने लंबी छलांग लगाई है। इनमें त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य शामिल हैं। लगातार प्राकृतिक आपदाएं झेलने के बावजूद उत्तराखंड सातवें नंबर पर है। 

उन्होंने कहा कि जिन 16 विकास लक्ष्यों को लेकर यह सूची बनाई गई है, उनमें से किसी में भी बंगाल को पहला या दूसरा स्थान नहीं मिला। इस रिपोर्ट कार्ड से एक बात स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में संभावनाएं तो बहुत हैं लेकिन अन्य राज्य हमसे बेहतर कर रहे हैं। खास तौर पर उद्योग, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, इकोनॉमिकल ग्रोथ जैसे मामलों में बंगाल का पिछड़ापन कम नहीं हो सका है। हालांकि बंगाल में  प्राथमिक स्कूलों में दाखिले का दर बढ़ा है। यहां किसानों की आय बढ़ी है। पेयजल, इंधन, शहरी विकास एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों के दौरान उल्लेखनीय काम हुआ है। हालांकि उद्योग एवं इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में राज्य और पीछे गया है। इस रिपोर्ट में बंगाल के लिए कुछ और सकारात्मक चीजें सामने आई हैं। इनमें शिशु मृत्यु दर में कमी आना, महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी, लड़कों की तुलना में लड़कियों के जन्म दर में वृद्धि आदि शामिल हैं। 

प्रेसिडेंसी में अर्थशास्त्र के छात्र रह चुके पूर्व चीफ पोस्टमास्टर जनरल गौतम भट्टाचार्य ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि सरसरी तौर पर इस रिपोर्ट को देखने से जो बातें समझ में आती है, उनमें एक तो यह कि इंडेक्स में दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर भारत के राज्य आगे नजर आ रहे हैं, जबकि मध्य एवं पूर्व भारत के राज्य पीछे हैं। पश्चिम बंगाल, दक्षिण एवं पश्चिम भारत की तुलना में काफी पीछे हैं इसके कई कारण हैं। ऐतिहासिक कारणों की बात करें तो पश्चिम बंगाल में जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर 1029) पूरे भारत के औसत जनघनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर 382) से 2.7 गुना अधिक है। अर्थात, यहां  प्रति व्यक्ति प्राकृतिक संपदा उस अनुपात में कम है। बंगाल की इस प्राकृतिक समस्या को दूर करने के लिए केंद्र की ओर से कभी ईमानदार प्रयास नहीं किए गए। 

जाने-माने अर्थशास्त्री डॉक्टर अजिताभ रायचौधुरी ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि  एसडीजी में जो राज्य औसत से भी पीछे हैं, उनमें से ज्यादातर पूर्व तथा उत्तर पूर्व भारत से हैं।  बंगाल की स्थिति का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि यहां शिक्षा के मामले में लैंगिक विषमता नजर आ रही है, जहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम है। इसका क्या मतलब निकाला जाए, राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी कन्याश्री योजना का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला? उच्च शिक्षा के मामले में तो बंगाल अंतिम पायदान पायदान पर है तो फिर इतने नए कॉलेज और विश्वविद्यालय खोलने का क्या अर्थ है? डॉक्टर रायचौधुरी ने आगे कहा कि परिष्कृत जल एवं साफ सफाई के मामले में पश्चिम बंगाल बड़े राज्यों की तुलना में पीछे है। सबसे अधिक समस्या गांव में पाइप के जरिये जलापूर्ति करने को लेकर है, जबकि यहां तो सरकार इस मद में पर्याप्त निवेश कर रही है। कर्म संस्कृति एवं वाणिज्य के मामले में भी बंगाल बेहतर स्थिति में नहीं है। यह सोचने का विषय है। 

विख्यात अर्थशास्त्री तथा दिल्ली स्थित शोध संस्थान आरआईएस के अध्यापक डॉ. प्रबीर दे ने कहा कि एसडीजी के 16 सूचकों में से बंगाल किसी भी सूचक में पहले स्थान पर नहीं रहा जबकि  पश्चिम बंगाल का पड़ोसी राज्य ओडिशा ‘लाइफ बिलो वाटर’ एवं ‘क्लाइमेट एक्शन’ जैसे सूचकों में प्रथम रहा है। त्रिपुरा जैसा छोटा राज्य जहां लोगों का जीवन स्तर बहुत ऊंचा नहीं है, वह भी  ‘रेसपांसिबल कंजम्पशन एंड प्रोडक्शन’ सूचक में पहले स्थान पर रहा है। इनकी तुलना में बंगाल में महत्वपूर्ण सूचकों में काफी पीछे नजर आता है। लैंगिक समानता एवं सस्टेनेबल सिटीज एंड कम्युनिटीज जैसे  सूचकों में बंगाल  बहुत पीछे है।

अध्यापक प्रबीर दे कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के लोग इस सूचक के साथ सहमत नहीं भी हो सकते हैं लेकिन आप इस बात से जरूर सहमत होंगे कि बंगाल को लैंगिक समानता तथा सस्टेनेबल सिटीज एंड कम्युनिटीज के मामलों में बहुत काम करने की जरूरत है। महिलाओं को हर क्षेत्र में  अधिकार देना होगा। राज्य के शहरों को पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाकर अच्छे तरीके से तैयार करना होगा। इसके साथ ही शहरों और गांवों के बीच आर्थिक-सामाजिक दूरी को कम करना होगा? इसके साथ ही हर प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास जरूरी है।

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