-बद्रीनाथ और केदारनाथ के प्रति आशा भोंसले रखती हैं अटूट श्रद्धा-इस बार 17 कोे केदारनाथ, 18 को बद्रीनाथ के खुल रहे हैं कपाट
विपिन बनियालदेहरादून, 16 मई (हि.स.)। यह वर्ष 1989 की बात है। एक गढ़वाली फिल्म का गाना आशा भोंसले से रिकार्ड कराने के लिए संगीतकार कैलाश थलेड़ी और सह निर्देशक बसंत घिल्डियाल उनसे मुंबई में मिले। आशा भोंसले की सहमति के बाद जब उनसे फीस के बारे में बात की गई, तो उनके जवाब ने दोनों को चौंका दिया था। आशा भोंसले का कहना था-आप बद्री-केदार से आए हैं, आप से भला फीस कैसे ले सकती हूं। बाद में उन्होंने बिना कोई फीस लिए इस फिल्म का गाना गाया। यह गाना उत्तराखंडी सिनेमा का पहला और आखिरी ऐसा गाना है, जिसे मखमली आवाज की मल्लिका आशा भोंसले का स्वर नसीब हुआ है।
न सिर्फ इस गढ़वाली गाने के आलोक में, बल्कि कई अन्य मौकों पर भी आशा भोंसले ने बद्री-केदार के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा का परिचय दिया है। कोरोना काल के बीच केदारनाथ के कपाट इस बार 17 मई को खुल रहे हैं, जबकि बद्रीनाथ के कपाट खुलने की तारीख 18 मई तय की गई है।
वर्ष 1989 में ग्वेरू छोरा नाम की गढ़वाली फिल्म के लिए संगीतकार कैलाश थलेड़ी एक गाना आशा भोंसले से गंवाना चाहते थे। इस दौरान हिंदी के अलावा तमाम आंचलिक भाषाओं की फिल्मों में भी आशा भोंसले जमकर गाना गा रही थीं। उनकी फीस भी बहुत ज्यादा थी। मगर गढ़वाली गीत जन्मू कू साथ के लिए उन्होंने एक पैसा नहीं लिया। फिल्म के संगीतकार कैलाश थलेड़ी के अनुसार-आशा भोंसले से मिलने के लिए वे लोग बिना किसी अप्वाइंटमेंट के पहुंच गए थे। अपने व्यस्त शेड्यूल के बावजूद बद्री-केदार की हमारी पृष्ठभूमि को देखते हुए आशा भोंसले फिल्म में गाने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने बातचीत के दौरान दोनों पवित्र धामों के प्रति अपने भक्ति भाव का कई बार प्रदर्शन किया। थलेड़ी के अनुसार-आशा भोेंसले ने लंदन के अपने एक कार्यक्रम की वजह से गाने के लिए तुरंत डेट देने में असमर्थता जाहिर की। छह महीने बाद की एक डेट थी और तय दिन और समय पर वह स्टूडियों में रिकार्डिंग कराने के लिए पहुंच गईं। आशा भोंसले की शख्सियत को देखते हुए फिल्म के निर्माता ने उस वक्त के सबसे महंगे स्टूडियो में इस गाने की रिकार्डिंग कराई। उस वक्त चंद घंटों के लिए इस स्टूडियो की फीस डेढ़ लाख रुपये चुकानी पड़ी थी।
2021-05-16