भोपाल, 14 मई (हि.स.)। दुनिया भर में कोरोना वायरस का संक्रमण फैला हुआ है, संवेदनात्मक स्तर पर हर कोई मानवीयता के धरातल पर यथासंभव एक-दूसरे की सहायता कर भी रहा है, लेकिन इसके साथ ही यह मानव त्रासदी का वह दौर है। जहां कोरोना ने संबंधों को इस हद तक तोड़कर रख दिया है कि लोग अपनों की अंतिम क्रिया करने भी सामने नहीं आ रहे। भारत सहित पूरी दुनिया से ऐसी तमाम घटनाएं रोज सुनने में आ रही हैं जो निश्चित तौर पर हमें अंदर तक झकझोर देती हैं। इसके बाद भी अंतत: हमें अपने मनोबल को ऊंचा बनाए रखना है, तभी हम कोरोना वायरस के संकट से निजात पा सकते हैं।
इस विषय को लेकर हिन्दुस्थान समाचार ने प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक खासकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पिछले 25 वर्षों से काम कर रहे डॉ. राजेश शर्मा से विशेष बात की। उन्होंने जो बताया यदि उसे हर कोई अपने जीवन में अपना ले तो कोविड-19 वायरस का संक्रमण हो भी जाए तब भी हम इससे शीघ्र बाहर निकल आएंगे।
नकारात्मकता को अपने से दूर रखना होगाउन्होंने कहा, आज विश्व भर के नामी मनोवैज्ञानिकों और शोधकर्ता इस बात को स्वीकार्य कर रहे हैं कि बीमारी से निपटने के लिए बेहतर मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संतुलन बेहद जरूरी है। नेशनल एसोसिएशन ऑफ साइकोलॉजिकल साइंस इंडिया हो या ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम सभी मनोवैज्ञानिकों का एक ही मत है, कि इस कोरोना काल में जितना हो सके उतना नकारात्मक खबरों से दूर रहें। अपने परिवार के साथ अधिकतम समय बिताएं और भोजन के स्तर पर पीएच5 के अधिक स्तर की डाइट लें।
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉ. राजेश शर्मा आंकड़ों के साथ कहते हैं कि आज विश्व की एक बड़ी जनसंख्या गंभीर मानसिक बीमारियों से जूझ रही है। पूरे विश्व में लगभग 45 करोड़ लोग गंभीर मानसिक विकारों से त्रस्त हैं जिसमें कि यदि भारत की बात की जाए तो हमारे यहां वर्ष 2021 में लगभग 20 करोड़ व्यक्ति इससे पीड़ित हैं। यह संख्या पूरे विश्व की सर्वाधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 7.5 फीसदी आबादी किसी-न-किसी मानसिक समस्या से जूझ रही है। विश्व में मानसिक और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की समस्या से जूझ रहे लोगों में भारत का करीब 15 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। जबकि इसकी तुलना में इन्हें सेवाएं देनेवाले चिकित्सकों की संख्या बहुत ही न्यूनतम हैं।
डॉ. राजेश कहते हैं कि यह तो कुछ विशेष परिस्थिति जन्य लोगों का आंकड़ा है, किंतु आज के परिप्रेक्ष्य में कोरोना के भय से आम स्वस्थ्य लोगों पर भी इस मानसिक अस्वस्थता का शारीरिक अस्वस्थता से सीधा संबंध दिखाई दे रहा है । कह सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की स्थिति में देर सबेर शरीर का भी अस्वस्थ होना स्वभाविक है। इसी प्रकार यदि शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता है तो इसके कारण कोई ना कोई मानसिक विकृति जैसे हीनभावना इत्यादि हमारे भीतर पनपने लगती है। अत: स्वास्थ्य की देखभाल हेतु मानसिक स्वस्थता अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए हमें आज से ही नकारात्मक बातों, खयालों को त्यागकर अच्छे विचारों को मन में बार-बार लाने के लिए अभ्यास करना होगा।
मनोबल बनाए रखें उन्होंने कहा कि एक अच्छे जीवन के लिए दोनों (शरीर और मन) का ही स्वस्थ्य रहना जरूरी है, इसलिए सबसे अधिक वर्तमान समय की यह आवश्यकता है कि हम शरीर से भले ही अस्वस्थ हो रहे हों, दिख भी रहा है कि सांस लेने में दिक्कत आ रही है, ऑक्सीजन स्तर कम हो गया है, हमारे आप-पास भी कुछ इसी प्रकार का बुरा घट रहा है, किंतु हमें अपने मनोबल को बनाए रखना है। बार-बार अपने को यही समझाना है कि सभी कुछ ठीक होगा। कोरोना मेरा कुछ नहीं करेगा। दवाएं मुझे ठीक कर रही हैं।
वे कहते हैं कि आपका जैसा भाव होगा, आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उसी अनुरूप आपको परिणाम देने लगती है। यही कारण है कि एक ओर 25-30 वर्ष की आयु के युवा कोरोना से जंग हार रहे हैं तो दूसरी तरफ 103 वर्ष तक के बुजुर्ग कोरोना को अपने शरीर से दूर करने में कामयाब हो सफलता की कहानी गढ़ रहे हैं। वस्तुत: कोविड-19 जैसी महामारी से बचने के लिए मनोविज्ञान, भावनात्मक बुद्धिमता और सामाजिक शिक्षा की भूमिका के बीच का सामंजस्य बेहद जरूरी है। मनोरोग चिकित्सक जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के पहले महानिदेशक भी रहे, ब्रॉक चिशहोम, उनकी यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि ”बगैर मानसिक स्वास्थ्य के, सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त नहीं हो सकता” । आज जितने भी लोग कोरोना संक्रमण से ठीक हो रहे हैं, आप यदि उनसे बात करेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने अपने मनोबल को बनाए रखा।
डॉ. राजेश शर्मा एक कोविड पेशेंट का उदाहरण भी देते हैं, मध्य प्रदेश के भोपाल से जुड़ी हैं यह । इस कोविड संक्रमित की दोनों किडनी खराब, लंग्स में 500 एमएल पानी और 10 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद भी इन्होंने अपनी हिम्मत बनाए रखी, आखिर उन्होंने 45 दिन के संघर्ष के बाद कोरोना को हरा दिया। उक्त 45 साल की महिला ने बताया है कि बच्चों की कहीं हर बात कान में पूरे समय गूंजती कि मां आपको हमें अकेला छोड़कर नहीं जाना है। आपको हमारे लिए जीना ही होगा। बस, उनकी कही यह बात जीवन अमृत साबित हुई। जब भी अस्पताल में आसपास के मरीजों को तड़पता हुआ देखती तो खुद को निगेटिविटी से दूर रखने के लिए प्रवचन सुनती या फिर भजन सुनने लगती। इस बहाने खुद को जीवट बनाती। इच्छाशक्ति को मजबूत करती। इसके अलावा परिवार की खट्टी मीठी यादों को अपनी स्मृतियों में लाती। लगभग 45 दिन की जद्दोजहद के बाद वे अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर पहुंची।
डॉ. शर्मा कहते हैं कि इसी प्रकार की जिनकी भी दृढ़ इच्छा शक्ति अपने को जीवित बनाए रखने की रही है, आप देखेंगे कि उन सभी ने कोरोना होने के बाद सफलता से उसे अपने से दूर किया है। व्यक्ति, समूह, चिकित्सक, परिवार यह सब बाद में हैं, पहले तो अपने से प्यार और अपने मन के संतुलन का विषय है। यह ठीक है तो बाहर का मिल रहा सहयोग काम करेगा अन्यथा सब व्यर्थ चला जाता है।
उन्होंने कहा, इसलिए रोज प्रणायाम करें, अच्छा साहित्य पढ़े, यदि पेड़-पौधों में रुचि है तो उनमें समय लगाएं। आध्यात्मिक साहित्य पढ़ें, अच्छा संगीत सुनें । पूरी नींद (छह से आठ घण्टे की) लें । आप पाएंगे कि इन छोटे-छोटे प्रयासों से आपका मनोबल ऊपर जा रहा है। वास्तव में इस समय में यही वे सकारात्मक कार्य हैं जिनसे आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं और यदि ये बना रहेगा तो कोरोना का संक्रमण हो भी जाए, तब भी आप शीघ्र स्वस्थ हो जाएंगे। इतना निश्चित मानिए।
2021-05-14