रंजना मिश्रा
देशभर में कोरोना केस लगातार बढ़ रहे हैं। कोरोना महामारी की दूसरी लहर का लोगों में जबरदस्त खौफ है, इस लहर से लोग इतनी बड़ी संख्या में शिकार हो रहे हैं कि जांच से लेकर इलाज तक में आम लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना के इस नये स्ट्रेन की जांच कराने के लिए आजकल लोग सीटी स्कैन करा रहे हैं, क्योंकि नया स्ट्रेन आरटी-पीसीआर टेस्ट से पकड़ में नहीं आ पाता, इसलिए लोग कोरोना के मामूली लक्षण दिखते ही सीटी स्कैन कराने के लिए भागने लगते हैं। किंतु नई स्टडी से पता चला है कि मामूली लक्षण होने पर सीटी स्कैन नहीं कराना चाहिए, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है। सीटी स्कैन से निकलने वाले रेडिएशन से कैंसर होने की संभावना रहती है, अतः कोरोना की जांच के लिए सीटी स्कैन कराना भी बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।
सीटी का मतलब है ‘कंप्यूटेड टोमोग्राफी’, इस तकनीक की मदद से चेस्ट यानी छाती या मस्तिष्क को स्कैन किया जाता है। टोमोग्राफी का मतलब है किसी भी चीज को छोटे-छोटे सेक्शन में काटकर उसका अध्ययन करना। कुल 11 प्रकार के सीटी स्कैन होते हैं। कोरोना वायरस के मामले में मरीज लंग्स यानी फेफड़ों का सीटी स्कैन कराते हैं, जिससे यह पता चलता है कि उनके फेफड़ों में यह वायरस फैला है या नहीं। आजकल कोरोना की जो दूसरी लहर आई है, उसमें ये बात सामने आई है कि ये वायरस सीधा फेफड़ों में अटैक करता है। कोरोना का यह नया वेरिएंट आरटी पीसीआर टेस्ट को भी कई बार चकमा दे देता है लेकिन ये सीटी स्कैन में पकड़ा जाता है, इसलिए लोग आजकल आरटी पीसीआर टेस्ट की बजाय सीटी स्कैन पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। लेकिन सीटी स्कैन का अपने आप में बहुत बड़ा नुकसान भी है, इससे व्यक्ति को कैंसर भी हो सकता है।
कोविड के केस में डॉक्टर जो सीटी स्कैन कराते हैं, वो है ‘एचआरसीटी चेस्ट’ यानी सीने का हाई रिजोल्यूशन कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन, इस टेस्ट के जरिए फेफड़ों की थ्रीडी यानी त्रि आयामी इमेज बनती है, जो बहुत बारीक डिटेल्स बताती है। इससे यह पता चलता है कि क्या फेफड़ों में किसी तरह का कोई इंफेक्शन है और यदि इंफेक्शन है तो कहां तक फैला हुआ है। इस प्रक्रिया में रोगी को एक बेंच पर लिटाया जाता है, बेंच पर लेटने से पहले रोगी को धातु से बने हर गहने या सामान को अपने शरीर से अलग कर देना होता है, फिर यह बेंच एक छल्ले की तरह की मशीन में सरका दी जाती है, मशीन शरीर के भीतर की तस्वीरें लेती है, ठीक वैसे ही जैसे एक्सरे होता है, लेकिन सीटी स्कैन द्वारा, एक्स-रे की अपेक्षा ज्यादा व्यापक और सटीक जानकारी प्राप्त होती है। सीटी स्कैन में शरीर के आंतरिक अंगों की गहराई से तस्वीर ली जाती है और ऐसा करते समय सीटी स्कैन से काफी बड़ी मात्रा में रेडिएशन निकलता है, जो कैंसर का भी कारण बन सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि रेडिएशन के मामले में एक सीटी स्कैन, 300 से 400 बार चेस्ट एक्सरे करवाने के बराबर है यानी यदि कोई व्यक्ति एक सीटी स्कैन कराता है तो समझना चाहिए कि उसने 400 बार चेस्ट का एक्स-रे करवा लिया। यदि कोई व्यक्ति 1 महीने या 2 महीने के अंतराल में बार-बार सीटी स्कैन कराता है तो उससे वह रेडिएशन के संपर्क में आता है और इतनी ज्यादा रेडिएशन के संपर्क में आने की वजह से उसे कैंसर हो सकता है। एम्स दिल्ली के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया के अनुसार कोरोना के मामूली लक्षण होने पर सीटी स्कैन नहीं कराना चाहिए।
मामूली लक्षण होने पर सीटी स्कैन कराने का कोई फायदा नहीं होता क्योंकि कई बार फेफड़ों में थोड़ा बहुत इंफेक्शन होने पर व्यक्ति की रिपोर्ट तो पॉजिटिव आती है लेकिन होम आइसोलेशन और सामान्य दवाओं से रोगी ठीक हो जाता है इसलिए मामूली लक्षण होने पर सीटी स्कैन न कराएं। सीटी स्कैन करवाने से किडनी में भी समस्या हो सकती है, अगर सीटी स्कैन करवाने से पहले ही किडनी की कोई समस्या है तो यह बात डॉक्टर को जरूर बतानी चाहिए। अगर व्यक्ति डायबिटीज़ का मरीज है और उसकी दवा चल रही है तो उसे सीटी स्कैन करवाने से पहले या बाद में अपनी दवा को बंद कर देना चाहिए और डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही सीटी स्कैन कराना चाहिए। बच्चों का सीटी स्कैन कराते वक्त खास ख्याल रखना चाहिए। बार-बार सीटी स्कैन करवाने से बच्चों का शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है, कुछ लोगों को सीटी स्कैन करवाने के बाद एलर्जी भी हो जाती है।
अगर ऑक्सीजन का स्तर 94 से लेकर 100 के बीच है तब भी सीटी स्कैन कराने की कोई आवश्यकता नहीं होती, किंतु यदि रोगी में कोरोना वायरस के गंभीर लक्षण दिख रहे हैं और इसके बावजूद आरटी पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है तो डॉक्टर की सलाह पर सीटी स्कैन कराना चाहिए। सांस लेने में परेशानी होने पर और यदि ऑक्सीजन का लेवल लगातार 94 से नीचे रहे तो रोगी को सीटी स्कैन करा लेना चाहिए। डॉ रणदीप गुलेरिया ने यह भी बताया है कि सभी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज़ अवश्य लगवानी चाहिए। जिन लोगों को कोरोना का संक्रमण हो चुका है, उन्हें भी वैक्सीन की दोनों डोज़ लेनी चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को वैक्सीन की पहली डोज़ लगवाने के बाद कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है, तो उसे ठीक होने के 2 से 8 हफ्तों के बाद वैक्सीन की दूसरी डोज़ लगवानी चाहिए।
ध्यान देने की बात यह है कि मामूली लक्षण होने पर यानी बुखार या सर्दी जुकाम होने पर भी डॉक्टर वैक्सीन नहीं लगवाने की सलाह देते हैं। इसलिए ठीक होने के बाद ही वैक्सीन लगवानी चाहिए, ताकि अगली बार ये वायरस से लड़ने के लिए व्यक्ति के शरीर में एक रक्षा कवच के तौर पर काम कर सके।
2021-05-11