तो बंगाल भूल गया चैतन्य महाप्रभु और विवेकानंद को

आर.के. सिन्हा
पशिचम बंगाल का जिक्र आते ही चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रविन्द्रनाथ टेगौर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चेहरे जेहन में उभरने लगते हैं। इन सबने अपने विचारों से करोड़ों-अरबों लोगों को प्रभावित किया। ये अब भी भारत के नायक हैं और सदैव बने रहेंगे। पर जिस धरती से इन सभी महापुरुषों का संबंध रहा है, वह अब हिंसा और खूनी खेल का अख़ाड़ा बन चुकी है। वहां एक विचारधारा से संबंधित लोगों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। अभी हाल ही में राज्य विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) की विजय के बाद कसकर खूनखराबा हुआ। हैरानी इस बात की है कि बंगाल में हिंसा थम नहीं रही है और राज्य के अलग-अलग हिस्सों से उपद्रव की खबरें लगातार आ रही हैं। हिंसा के शिकार भाजपा के कार्यकर्ता ही हो रहे हैं। चुनाव संपन्न होने के बाद अभीतक नौ कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। सैकड़ों घायल हो गए हैं। कुछ ने तो तृणमूल के अपराधी दादाओं के भय से बिहार, झारखण्ड, असम और उड़ीसा में भागकर शरण ले ली हैI
आजाद भारत में चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद पहले कभी ऐसी असहिष्णुता नहीं देखी गई थी। भारत के लोकतंत्र का इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि यहां चुनाव प्रचार के दौरान सब दल एक-दूसरे पर कसकर हल्ला बोलते हैं। आरोप- प्रत्यारोप भी जमकर लगते हैं। पर चुनाव नतीजे आने के बाद सबकुछ शांत हो जाता है। फिर चुनाव प्रचार के समय कही गई बातों को भुलाकर ही सभी दल आगे चलते हैं। लोकतंत्र में फैसले और मसले लोकतांत्रिक तरीके से ही हल हों, तो ही बेहतर भी है। दरअसल 24 परगना तथा कोलकाता के बेलेघाटा में हुई हिंसा ने तो देश के विभाजन से कुछ पहले बंगाल में हुई घोर हिंसा की यादें ताजा कर दी।
याद करें कि मोहम्मद अली जिन्ना के 16 अगस्त,1946 को सीधी कार्रवाई (डायरेक्ट एक्शन) के आह्वान में कोलकाता में सैकड़ों हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया था। 16 अगस्त 1946 की सुबह 10 बजे से ही कोलकाता में जगह-जगह छुरेबाजी, पथराव की घटनायें हुई तथा जबरदस्ती दुकानें बंद करवाई गई। मुस्लिम लीग के समर्थकों ने हिंदुओं और सिखों की दुकानें लूटनी शुरू कर दीं थीं। उनका कत्लेआम हुआ। हत्यारों को पुलिस का संरक्षण मिला हुआ था। तब वहां जिन्ना के चेले शाहिद सुहरावर्दी की सरकार थी। कहते हैं कि उन्होंने पुलिस महकमे को कह दिया था कि कत्लेआम होने देना। पुलिस बल में भी उन दिनों में मुसलमान भरे हुए थे। एक ही दिन में जिन्ना के सीधी कार्रवाई के आह्वान ने 1100 हजार निर्दोष हिन्दुओं की जानें ले ली। मारे गए हिन्दुओं में लगभग 400 उड़िया मजदूर भी थे। मतलब ये हुआ कि 1946 के बाद कोलकत्ता में एकबार फिर से मानवता शर्मसार हुई।
पश्चिम बंगाल की हालिया हिंसा का एक दुखद पक्ष यह भी रहा कि वहां हिंसा के दौरान किसी कथित प्रगतिशील या सेक्युलरवादी नेता, संगठन या समूह ने अपना विरोध नहीं जताया। जब आग पूरी तरह से लग गई तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंसा को रोकने के लिए आला पुलिस अफसरों से मुलाकात भर की औपचारिकता पूरी की। इसे आप बेशर्मी ही तो कहेंगे। पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीजों के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैली हिंसा को देश-दुनिया ने सोशल मीडिया पर भी देखा। सैकड़ों तस्वीरें और वीडियो टीएमसी की कथित गुंडागर्दी के दावों के साथ सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे। यह अच्छी बात है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जारी हिंसा पर केंद्र ने सख्त रुख दिखाया है। यह जरूरी था। वर्ना वहां पर हिंसा को रोकने वाला कोई नहीं था। हिंसा को रोकने की पुलिस किसी भी स्तर पर चेष्टा नहीं करती दिखाई दी। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगे जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को फोन कर हिंसा पर चिंता जताई और इसे रोकने के लिए कदम उठाने को कहा।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के नायकों का लगातार अनादर भी होता रहा है। कुछ साल पहले कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को तोड़ दिया गया था। उनकी मूर्ति पर कालिख पोत दी गई था। टॉलीगंज स्थित श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को तोड़ा गया था। यह कृत्य जाधवपुर यूनिवर्सिटी के 6 छात्रों ने किया था। माफ करें लगता तो यह है कि बंगाल अपने नेता सुभाष चंद्र बोस, गुरुदेव टेगौर और दूसरे शिखर नायकों को अब भूल चुका है। उनके विचारों और आदर्शो से उसका कोई संबंध नहीं रहा। देश के संगीत प्रेमियों ने पिछला साल गायक और संगीतकार हेमंत कुमार के शताब्दी साल के रूप में मनाया था। उनकी मधुर आवाज पर एकबार लता मंगेशकर ने कहा था कि हेमंत दा को सुनकर लगता है कि मानो कोई साधु किसी मंदिर में गा रहा हो। ‘जागृति’ फिल्म का वह अमर गीत ‘आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की’ को उन्होंने ही कंपोज किया था। उन्होंने ही ‘ना तुम हमें जानों…’ ‘ये अपना दिल तो अवारा…’ या ‘दिल की सुनो दुनियावालों…’ ‘ये नैन डरे डरे…’ जैसे कालजयी गीत गाए थे। वे बांग्ला के तो सर्वश्रेष्ठ गायक और संगीतकार माने ही जाते हैं। लगता है कि बंगाल उन्हें भी भुला चुका है। अगर उसे हेमंत कुमार किसी भी तरह से याद होते तो बंगाल हिंसा में लिप्त नहीं होता।
मुझे कहने दें कि मौजूदा बंगाल एक बेहद अराजक और अनुशासनहीन राज्य बन चुका है। वहां पर लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोंटा जा चुका है। केन्द्र सरकार को इसपर सीधी नजर रखनी होगी। अगर सरकार ने इस मोर्चे पर कोताही की तो पश्चिम बंगाल में स्थितियां पूरी तरह से बेकाबू हो जाएंगी। चूंकि राज्य में रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं और नए उद्योग नहीं लग रहे हैं, इसलिए राज्य से नौजवानों का पलायन बढ़ता जा रहा है। केन्द्र सरकार को देखना होगा कि राज्य में अमन की बहाली हो और विकास हो। ये बड़ी और कठिन चुनौती है। ममता बनर्जी से भी देश उम्मीद करेगा कि वह अब पश्चिम बंगाल में नफरत की सियासत को छोड़ देंगी और केंद्र के साथ सहयोगपूर्वक काम करके अपने “सोनार-बांग्ला” का विकास करेंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *