बागपत से सात बार सांसद चुने गए चैधरी अजित सिंह

बागपत, 06 मई (हि.स.)। बागपत की पहचान पूरे देश में पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह और उनके बेटे अजित सिंह की राजनीतिक कर्मभूमि के रूप में रही है। पहले चरण सिंह तो बाद में बागपत के लोगों ने अजित सिंह को अपना प्रतिनिधि के तौर पर लोकसभा में भेजा। छोटे चैधरी बागपत से सात बार सांसद चुने गए।

राजनीति में कदम रखते ही बागपत के लोगों ने चैधरी चरण सिंह को अपने दिल में बसा लिया। 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अजित सिंह 2009 तक यहां तक सांसद चुने जाते रहे।
सात बार बागपत से सांसद चुने गएअजित सिंह ने सबसे पहले 1989 में बागपत से लोकसभा चुनाव जीता। इसके बाद 1991 में फिर से सांसद चुने गए। 1996 में छोटे चैधरी को लोगों ने फिर से लोकसभा में पहुंचाया। 1997 के उप चुनाव में फिर से बागपत से अजित सिंह सांसद चुने गए। 1998 में भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने अजित सिंह को हरा दिया, लेकिन 1999 में फिर से अजित सिंह ने बागपत से जीत का परचम फहराया। 2004 और 2009 में भी अजित सिंह को बागपत लोकसभा सीट से जीत हासिल हुई।
केंद्र में चार बार मंत्री बने1986 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बनकर अजित सिंह ने संसद में प्रवेश किया। इसके बाद लिए गए कई फैसलों के बल पर अजित सिंह सत्ता में भागीदार बने। वह केंद्र सरकार में चार बार मंत्री के तौर पर शामिल हुए। इस दौरान उद्योग मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, खाद्य मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय का दायित्व संभाला। उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार में उनकी पार्टी के नेता शामिल हुए।
हरित प्रदेश को लेकर चलाया था आंदोलनपश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश के रूप में अलग प्रदेश को अजित सिंह ने राजनीतिक मुद्दा बनाया। हरित प्रदेश निर्माण के लिए कई साल आंदोलन चलाया। इस मुद्दे को अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिलने के कारण बाद में राष्ट्रीय लोकदल ने उससे खुद को अलग कर लिया।
मुजफ्फरनगर दंगे से सियासी बियाबान में पहुंच गएपश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक समय अजित सिंह की तूती बोलती थी। मेरठ, सहारनपुर, आगरा, अलीगढ़ मंडल में राष्ट्रीय लोकदल की तूती बोलती थी। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद रालोद सियासी बियाबान में पहुंच गए। रालोद का परंपरागत जाट और मुस्लिम वोट बैंक छिटक गए तो रालोद मुखिया अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चैधरी को 2014 में हार झेलनी पड़ी। 2019 में सपा, बसपा का गठबंधन भी रालोद का सियासी सूखा खत्म नहीं कर सका।
किसानों के नाम पर चलती थी राजनीति चैधरी अजीत सिंह हमेंशा किसानों की लडाई लडते रहे। पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की लडाई से उन्हें राजनीतिक संजीवनी मिलती रही। किसानों को गन्ना भुगतान और सिंचाई के लिए नहरों में पानी ये ही वे दो मुददे थे जिनको लेकर रालोद कार्यकर्ता आंदोलन करते थे। 

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