रायबरेली, 04 मई(हि.स.)। पंचायत चुनावों में सोनिया के गढ़ में इस बार निर्दलियों का दबदबा रहा। सबसे ज्यादा 23 निर्दलीयों को जनता ने चुना है। पार्टियों में सपा को 12, कांग्रेस को नौ तथा भाजपा को सिर्फ आठ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। भाजपा कांग्रेस को पछाड़ने में पूरी तरह से पस्त हो गई और उसका कांग्रेस को पीछे करने का सपना पूरा नहीं हो सका। इस बीच निर्दलीयों की सबसे ज्यादा संख्या होने से हर दल की निगाहें इस ओर लगी हुई है।
जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए ये परिणाम काफ़ी अहम है अब जहां सपा सबसे प्रबल दावेदार है वहीं कांग्रेस और भाजपा भी अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
दरअसल, कांग्रेस के एकमात्र गढ़ और सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र की ओर सभी की निगाहें लगी हुई है। जैसे-जैसे परिणाम आते जा रहे हैं आगे की रणनीति भी तैयार होती जा रही है। इस बार पंचायत चुनावों की सबसे ज्यादा तैयारी भाजपा ने कर रखी थी,पार्टी ने सभी 52 सीटों पर उम्मीदवार भी उतारे थे, लेकिन इसका ज्यादा फायदा पार्टी को नहीं मिला, उसके केवल 8 उम्मीदवार ही विजयी हो पाए। हालांकि इसके पीछे संगठन के अंदर सुगबुगाहट भी शुरू हो गई, अंदर खाने बागियों के चुनाव लड़ने और उनपर कोई कार्रवाई न होने से कार्यकर्ताओं के बीच आवाज भी उठने लगी।
सबसे बड़ा झटका तो एमएलसी दिनेश सिंह को लगा, जिनकी अनुज वधु व पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुमन सिंह भारी मतों से पराजित हो गई। एमएलसी के कई समर्थक जो बागी के तौर पर लड़ रहे थे उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी। पंचायत चुनाव में जिस तरह भाजपा ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर तैयारी की थी और कांग्रेस सपा को पछाड़ने की रणनीति बनाई थी वह सब धराशायी हो गई।
सपा ने इन चुनावों में परचम लहराते हुए 12 सीटें जीती है और उसके कई उम्मीदवार जिला पंचायत अध्यक्ष की होड़ में काफी आगे हैं।कांग्रेस की भी आधे अधूरे मन से की गई तैयारियों को जनता ने भरपूर समर्थन दिया और सोनिया गांधी के नाम पर लड़ रहे उमीदवारों को जिताया। कांग्रेस के 9 उम्मीदवार इस चुनाव में विजयी रहे। सबसे ज्यादा 23 निर्दलियों को जनता ने चुना जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नही है, यह अलग बात है कि कुछ बागी निर्दलीय के तौर पर जीतने में सफल रहे। अब सबकी निगाहें इन निर्दलियों की तरफ़ है।
पूर्व सांसद की बहू,पूर्व विधायक के बेटे और कई कद्दावर हैं मैदान में
रायबरेली में जिला पंचायत अध्यक्ष का पद इस बार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है,जिससे पर्दे के पीछे रणनीति बनाई जा रही है। हालांकि कई कद्दावर मैदान में आ रहे हैं जिनमें कांग्रेस से पूर्व सांसद अशोक सिंह की बहू आरती सिंह,सपा से पूर्व विधायक रामलाल अकेला के बेटे विक्रांत अकेला,सहित कई अन्य कद्दावर मैदान में हैं। सत्तारूढ़ भाजपा किसी भी कीमत में कुर्सी अपने कब्जे में चाहती है, जबकि लंबे समय तक कांग्रेस इस पर काबिज रह चुकी है और वह इसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी। सपा के सबसे ज्यादा सदस्य इस बार चुनकर आये हैं ऐसे में कई महत्वपूर्ण नेताओं को पार्टी नेतृत्व ने इसकी अहम जिम्मेदारी सौंपी है।
2021-05-04