जगमोहनः मुल्क के विभाजन का दंश जिन्हें ताउम्र सालता रहा

डॉ. प्रभात ओझा

नई दिल्ली, 04 मई (हि.स.)। जगमोहन अविभाजित जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त गोवा, दमन और दीव के राज्यपाल और दिल्ली के उप राज्यपाल भी रहे। वे केंद्रीय मंत्री रहे, एक बार राज्यसभा के नामित, तो तीन बार लोकसभा के निर्वाचित सदस्य रहे। किसी राजनेता के हिस्से इतनी उपलब्धियां कम नहीं होती, किंतु जगमोहन राजनेता से अधिक बेहतर प्रशासक थे।

कहा जाता है कि राजनेता में प्रशासक के गुण उसे सफलता दिलाते हैं। इस अर्थ में दूसरी बार उनका जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल होना शायद सफलता की श्रेणी में न रखा जाय। फिर भी याद रखना होगा कि वह राज्य में चरमपंथ बढ़ने का दौर था। घाटी से कश्मीरी पंडित बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे थे। राज्यपाल पद पर जगमोहन की नियुक्ति का विरोध करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अपहरण की घटना के बाद जगमोहन को राज्यपाल के रूप में भेजा गया था। उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए और राज्य में कई जगह कर्फ्यू लगाना पड़ा। एक बड़ी घटना में गवाकदल ब्रिज पर पुलिस की गोली से बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। जगमोहन को पांच महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा। इसके साथ राज्य में उनके पूर्णकालिक राज्यपाल वाले कार्यकाल को भी याद रखना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह कि राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री और एक विचारक के तौर पर हर बार उन्होंने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने का विरोध किया था। आज याद करना चाहिए कि इस दर्जे की समाप्ति के बाद गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जगमोहन के निवास पर जाकर उनसे मुलाकात की थी।

जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा देने को जगमोहन विभाजनकारी मानते रहे। उन्होंने मजबूती के साथ कहा कि जब पूरे देश के मुसलमान इस अनुच्छेद के बिना रह सकते हैं तो जम्मू-कश्मीर में ही यह जरूरी क्यों हो। विशेष दर्जे को वे गरीबों के हित के खिलाफ मानते थे। उन्होंने साफ कहा कि निहित स्वार्थी तत्व अनुच्छेद 370 का गलत इस्तेमाल करते हैं। अविभाजित भारत के हाफिजाबाद (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में 1927 में पैदा हुए जगमोहन को विभाजन का दंश जीवन भर सालता रहा। उनका मानना था कि संप्रदाय के आधार पर पाकिस्तान बन जाने के बाद लोकतांत्रिक भारत में किसी संप्रदाय को खास महत्व देने का कोई कारण नहीं है।

जगमोहन को जम्मू कश्मीर के गवर्नर के साथ केंद्रीय शहरी विकास मंत्री, पर्यटन और संस्कृति मंत्री के रूप में भी याद किया जायेगा। राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे सम्मान मिले। जगमोहन के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि, “वो एक बेहतरीन प्रशासक और प्रख्यात विद्वान थे, उन्होंने सदा भारत की बेहतरी के लिए काम किया। उनके मंत्रित्व के कार्यकाल में नई नीतियाँ बनाई गईं।” सच यही है कि जगमोहन ने सदा भारत की बेहतरी के लिए काम किया।

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