तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2021ः स्टालिन ने पार लगायी द्रमुक की चुनावी नाव

– आंतरिक कलह और सत्ता विरोधी लहर अन्नाद्रमुक को ले डूबी

नई दिल्ली: 02 मई (हि.स.)। तमिलनाडु की राजनीति में जयराम जयललिता और एमके करुणानिधि युग के अवसान के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में सूबे की जनता ने एमके स्टालिन को बहुमत देकर राज्य की कमान उन्हें सौंप दी है। स्टालिन करुणानिधि के पुत्र और द्रविड़ मुनेत्र कषगम के प्रमुख हैं। 

जयललिता के निधन के बाद राज्य की सत्ता की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी अपनी कुर्सी नहीं बचा सके। न ही ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन ही उनकी सत्ता बचाने में कारगर साबित हुआ। इसके साथ ही करुणानिधि के योग्य उत्तराधिकारी के रूप में खुद को साबित करने में स्टालिन कामयाब रहे।

अन्नाद्रमुक में स्टालिन के मुकाबले लोकप्रिय नेता का अभाव

अन्नाद्रमुक के सत्ता से बेदखल होने के कारणों की पड़ताल करें तो सबसे बड़ी वजह यह रही कि जयललिता के निधन के बाद पार्टी में कोई ऐसा नेता उभर कर नहीं आया जो अपने प्रभाव से जीत दिला सके और द्रमुक प्रमुख स्टालिन के कद का मुकाबला कर सके। 

जयललिता का करिश्माई व्यक्तित्व था और आम जनता खासकर महिलाओं के बीच उनकी गजब की पकड़ थी। उनके निधन के बाद अन्नाद्रमुक में ऐसे नेता के लिहाज से बड़ा शून्य् पैदा हो गया और पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम सरीखे नेता इस शून्य को भरने में नाकाम रहे। पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम मौजूदा समय में अन्नाद्रमुक के बड़े नेता हैं, किंतु लोकप्रियता के मामले में वे जयललिता के मुकाबले नहीं ठहरते। जबकि, स्टालिन तमिलनाडु की राजनीति में पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम से ज्यादा लोकप्रिय और प्रभावी हैं।

अन्नाद्रमुक का आंतरिक कलह

अन्नाद्रमुक की आंतरिक कलह भी एक महत्वपूर्ण वजह बनी। मुख्यमंत्री पलानीस्वामी और उपमुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम के बीच वर्चस्व की चली लंबी लड़ाई ने भी हार की पटकथा तैयार कर दी थी। जयललिता के निधन के बाद पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन बाद में सुलह के फार्मूले के तहत सत्ता पलानीस्वामी के पास आई।  पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम के बीच की तनातनी ने कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने का काम किया।

स्टालिन के परिवार पर आयकर की छापेमारी

तमिलनाडु की सत्ता से अन्नाद्रमुक को बेदखल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार एमके स्टालिन की राह आसान करने में अन्नाद्रमुक का आंतरिक कलह तो महत्वपूर्ण रहा ही उसके साथ ही ऐन चुनावी बेला में उनके परिवार के खिलाफ आयकर की छापेमारी भी एक बड़ा कारक साबित हुई। 

चुनाव के दौरान ही स्टालिन की बेटी-दामाद के ठिकानों पर आयकर विभाग की छापेमारी हुई। छापेमारी भले ही जायज कारणों से हुई हो, किंतु. द्रमुक नेताओं ने इसे केंद्र सरकार की बदले की कार्रवाई के रूप में पेश किया और जनता को यह समझाने में सफल रही की केंद्र सरकार जानबूझ कर तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता करुणानिधि के परिवार के साथ बदले की कार्रवाई के तहत ये छापेमारी करा रही है। नतीजतन, जनता का भावनात्मक झुकाव द्रमुक की ओर हुआ।

सत्ता विरोधी लहर

तमिलनाडु की सियासत में यह परंपरा रही है कि कोई पार्टी या गठबंधन लगातार सत्ता पर काबिज नहीं रहता। हालांकि, इस परंपरा को तोड़ते हुए जे. जयललिता ने दूसरी बार अन्नाद्रमुक को जीत दिलाई थी। वर्ष 2011 की जीत के बाद 2016 के चुनावों में भी वह सत्ता में वापसी करने में सफल रहीं। अन्नाद्रमुक के दस साल तक सत्ता में बने रहने से जाहिर है कि उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ने भी काम किया।

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