नई दिल्ली, 31 दिसम्बर (हि.स.)। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला के गर्भ में पल रहे 25 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति देने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है। जस्टिस विभू बाखरू की बेंच ने एम्स को 4 जनवरी तक महिला का परीक्षण करके भ्रूण की स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
महिला की ओर से वकील स्नेहा मुखर्जी ने कहा कि वो 25 हफ्ते की गर्भवती है। उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण को बाइलैटरल एग्नेसिस एंड एनलाइरामनी नामक बीमारी है। इस बीमारी की वजह से भ्रूण की दोनों किडनी अभी तक विकसित नहीं हुई है। मुखर्जी ने कहा कि उस भ्रूण को पूरे समय तक रखने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि भ्रूण के जन्म के बाद बच्चा बच नहीं पाएगा।
मुखर्जी की इस दलील के बाद कोर्ट ने एम्स के सुपरिंटेंडेंट को निर्देश दिया कि वो तत्काल महिला के भ्रूण के स्वास्थ्य का परीक्षण कर रिपोर्ट दें। कोर्ट ने एम्स को निर्देश दिया कि वो ये बताएं कि महिला का भ्रूण पूरे गर्भकाल के दौरान बच पाएगा कि नहीं। एम्स की रिपोर्ट पर कोर्ट 4 जनवरी को सुनवाई करेगा।
बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट की धारा 3(2) के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की अनुमति नहीं है। 12 से 20 हफ्ते के भ्रूण को तभी हटाया जा सकता है जब दो डॉक्टरों का पैनल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भ्रूण महिला के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।